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बाबा नूरदीन २७६ वृक्षके नीचे आ बैठा | मगल चौधरीने उसकी शक्ल-सूरतसे परदेशी मुसाफिर समझ, पास आकर कहा -'राम-राम भाई ! इस धूपमें चलना बड़ी हिम्मतका काम है।" "राम-राम भाई ! लेकिन, जिसको चलना होता है, उसे धूप-ठंढा थोड़े ही देखना पड़ता है।" "पानी पियो भाई | मुंह सूखा मालूम होता है। घड़े मे ठंढा पानी रखा है। "कौन बिरादरी हो १ । 'अहीर, मगल चौधरी मेरा नाम है। "चौधरी | लोटा-डोरी मेरे पास है। मै ब्राह्मण हूँ। कु बता दो। "कहो तो अपने लौडसे मॅगवा हूँ, पडितजी ।” * थका हुआ हूँ, मँगवा दो चौधरी ।” "बेटा घीसा ! इधर आइयो तो। बुला, मंगल चौधरीने देंवरी रुकवा वेटेको गुड़की डलीके साथ कुएंसे ताजा पानी भर लाने लिए कहा। मुसाफिरने पूछकर मालूम किया—दिल्ली अभी बीस कोस है इस लिए आज नहीं पहुँच सकता। | मगल चौधरी हँसने-हँसानेवाले जीव थे। चुप रहना उनके लिए सबसे मुश्किल काम था । चौधरीने कहा-“हमारे यहाँ इस साल तो भगवान्की कृपासे फसल बहुत अच्छी हुई है। बैसाखमें खलियान उठना मुश्किल होगा । पडितजी ! तुम्हारे यहाँ फसलका कैसा डौल हैं ?" फसल बुरी नहीं है चौधरी !
- राजा अच्छा होता है, तो देवता भी खुश होते हैं, पंडतजी । जबसे नया सुल्तान तख्त पर बैठा है तबसे प्रजा बड़ी खुशहाल है।
- स्था, ऐसी वातदेखते हो, चौधरी ?”