पृष्ठ:शशांक.djvu/१०

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( १२ ) था। यह घटना महासेनगुप्त के पाटलिपुत्र चले आने के पीछे हुई होगी क्योंकि जिस समय वे मालवा में थे उस समय उनके दो कुमार कुमारगुप्त और माधवगुप्त राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन के सहचर थे । श्रीयुत हेमचंद्र रायचौधरी, एम० ए०, ने अपने लेख में (J. A. S. B. New Series, Vol. XVI. 1920, No. 7) daya # महासेनगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र मान लिया है। इस प्रकार उन्होंने महासेन- गुप्त के तीन पुत्र माने हैं-देवगुप्त, कुमारगुप्त और माधवगुप्त । इस मत से कुछ और इतिहासज्ञ भी सहमत हैं। अब इस उपन्यास के नायक शशांक की ओर आइए। हर्षचरित में राज्यवर्द्धन को धोखे से मारनेवाले गौड़ के राजा का इस प्रकार उल्लेख है- तस्माच्च हेलानिर्जितमालवानीकमपि गौड़ाधिपेन मिथ्योपचारो. पचितविश्वासं मुक्तशस्त्रमेकाकिनं विश्रब्धं स्वभवन एव भ्रातरं व्यापादितमौषीत् । इसमें गौड़ाधिप के नाम का कोई उल्लेख नहीं है। फिर यह शशांक नाम मिला कहाँ ? हर्षचरित की एक टीका शंकर नाम के एक पंडित की है जो ईसा की बारहवीं शताब्दी से पहले हुए हैं। उन्होंने अपनी टीका में गौड़ाधिप का नाम शशांक लिखा है। इस नाम का विवरण से भी हो गया है। उसने लिखा है कि राज्यवर्द्धन को शे-शंग-क्रिय ने मारा था। शशांक की राजधानी का नाम कर्ण-सुवर्ण भी हुएन्सांग के कि-ए-लो-न-सु-फ-ल-न से निकाला गया है। मुर्शिदाबाद जिले के राँगामाटी नामक स्थान में जो भीटे हैं उन्हीं को विद्वानों ने कर्णसुवर्ण का खंडहर माना है। यह सब तो ठीक, पर शशांक गुप्तवंश के थे यह कैसे जाना गया ? बेलर साहब को हर्षचरित की एक पुरानी पोथी मिली थी जिसमें । समर्थन हुएन्सांग