पृष्ठ:शशांक.djvu/१२५

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( १०५) बहुत सेना और शक्ति रहते भी साम्राज्य की रक्षा नहीं हो सकती । राजधानी में भी कोई रुकावट नहीं हो सकती, वह अनायास शत्रु के हाथ में पड़ सकती है।" यशोधवल चुप हुए। वृद्ध सम्राट धीरे-धीरे बोले "मैं क्या करूँ ? मैं वृद्ध हूँ, शशांक बालक है। दैवज्ञ कह चुके हैं कि शशांक के राज्य- काल में ही साम्राज्य नष्ट होगा।" सम्राट की बात सुनकर वृद्ध यशो- धवल गरजकर बोले “ऐसी बात आपके मुँह से नहीं सोहतो। आप क्या पागलों और धूों की बात में आकर साम्राज्य नष्ट होने देंगे ? दैवज्ञ न जाने क्या-क्या कहा करते हैं। उनकी बातों पर ध्यान देने लगें तो संसार का सब काम धंधा छोड़ वानप्रस्थ लेकर बैठ रहें । कुमार बालक होने पर भी बुद्धिमान् , साहसी और अस्त्रविद्या में निपुण हैं, पर आपने उनकी यथोचित शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया है। साम्राज्य चलाने के लिए शौर्य और पराक्रम की अपेक्षा कूटनीति की अधिक आवश्यकता होती है। लगातार बहुत दिनों तक राज्य परिचा- लन का क्रम देखते देखते उसका अभ्यास होता है, आप स्वयं जानते हैं। आप ही को राजकार्य की शिक्षा किस प्रकार मिली है ? वंश में समय समय पर अद्भुतका प्रतापी बालक उत्पन्न होते हैं, उन्हीं को लेकर इतिहास की रचना होती है। चौदह वर्ष के समुद्रगुप्त ने उत्तरा- पथ के राजन्यसमुद्र को मथकर अश्वमेध का अनुष्ठान किया था। पंद्रह वर्ष की अवस्था में ही स्कंदगुप्त ने अस्त्र उठाकर हूणों की प्रबल धारा को पहली बाढ़ रोकी थी। इसी प्रकार चौदह वर्ष के शशांक नरेंद्रगुप्त प्राचीन साम्राज्य का उद्धार न करेंगे, कौन कह सकता है ? महाराजा- धिराज ! दुश्चिंता छोड़िए, अब भी उद्धार की आशा है। अब भी समय है, पर आगे न रह जाएगा।" वृद्ध सम्नाट ने धीरे से कहा “तो क्या करूँ ?"