पृष्ठ:शशांक.djvu/१६२

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अब (१४२) समय सम्राट के सामने खड़ी हूँ या और किसी राजपुरुष के, यह नहीं जानती; पर इतना श्रीमान् के मुखारविंद को देख समझ रही कि श्रीमान् दयामायाशून्य नहीं हैं, अपने चरण में स्थान देकर तीन तीन जीवों की रक्षा करेंगे। दिन में जहाँ कहीं भिक्खु लोग हम दोनों को देख पावेंगे, मठ में पकड़ ले जायँगे और मार डालेंगे। नगर भी बौद्धों की प्रधानता है ऐसा कोई नहीं है जो हम लोगों को भिक्खुओं के हाथ से बचा सके ।" यह कहकर तरला रोने लगी और उसने उस पुरुष के दोनों पैर पकड़ लिए। उन्होंने उसे आश्वासन देकर कहा "कुछ डर नहीं है, सेठ का लड़का कहाँ है ?" तरला ने हाथ उठाकर वसुमित्र की ओर दिखाया । उस पुरुष ने उसे निकट बुलाया । वसुमित्र ने सामने आकर झुककर प्रणाम किया। वृद्ध पुरुष ने तरला से पूछा "तुमने इन्हें किस प्रकार संघाराम के बाहर निकाला ।" तरला ज्यों ही उत्तर देने को थी कि किसी ने पीछे से पुकारा “आर्य ! पिता जी आपको स्मरण कर रहे हैं। उस दीर्घाकार पुरुष ने पीछे फिरकर देखा कि कुमार शशांक खड़े हैं । कुमार को देख वृद्ध ने पूछा “सम्राट ने मुझे क्यों स्मरण किया है ?" शशांक-जान पड़ता है, नगरप्राकार के संस्कार के लिए। दीर्घाकार पुरुष -नगरप्राकार के संस्कार से बढ़कर भारी बात. इस समय सामने है। किसी दंडधर को भेज दो। कुमार का संकेत पाते ही तोरण पर से एक दंडधर आकर सामने खड़ा हो गया। वृद्ध पुरुष ने कहा “सम्राट की सेवा में जाकर निवेदन करो कि मैं एक काम में फंसा हूँ, थोड़ी देर में आऊँगा । कुमार ! सामने जो ये स्त्री और पुरुष खड़े हैं, दोनों तुम्हारी प्रजा हैं । ये दुर्बल हैं, प्रबल के अत्याचार से पीड़ित होकर सम्राट की शरण में आए हैं" ! फिर तरला की ओर फिरकर वे बोले “ये युवराज शशांक हैं। तुमने