पृष्ठ:शशांक.djvu/३४१

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(३२२ ) -.. अनंत “क्या कहा? दूत-विषमज्वर से महाराज प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु हो गई । शशांक-इसके लिए देवगुप्त ने क्यों दूत भेजा है ? स्थायीश्वर से यथासमय संवाद आही जाता। दूत-महाराजाधिराज ! और संवाद भी है । महाराज प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु के समय महाकुमार राज्यवर्द्धन वहाँ नहीं पहुँच सके ! वे हूण देश की चढ़ाई पर गए हैं । वे नगरहार और पुरुषपुर के आगे गांधार देश की घाटियों में जा पहुँचे हैं । अब तक वे लौट कर नहीं आए हैं ? शशांक-तो क्या हर्ष ने अपने जेठे भाई के सिंहासन पर अधि- कार कर लिया है ? दूत-नहीं महाराजाधिराज ! महादेवी यशोमती ने चितारोहण किया । राज्यवर्द्धन अब तक लौट कर नहीं आए है । हर्ष शोक के मारे अधमरे से हो रहे हैं। महाराज ने निवेदन किया है कि कार्य समुद्र- गुप्त के विनष्ट साम्राज्य के उद्धार का यही समय है। वे कान्यकुब्ज पर आक्रमण करके यानेश्वर की ओर बढ़ रहे है । उन्होंने निवेदन किया है कि महाराजाधिराज इधर से प्रतिष्ठान दुर्ग पर चटपट अधिकार करें । शशांक-दूत ! मालवराज बावले तो नहीं हुए हैं । वे क्या नहीं जानते कि स्वगीय प्रभाकरवर्द्धन सम्राट दामोदरगुरु के दौहित्र थे। उनसे कहना कि साम्राज्य के साथ स्थायीश्वर राज्य का कोई विवाद नहीं है। दूसरी बात यह कि विपत्ति में पड़े हुए पुराने बैंरी पर भी आक्रमण करना छात्रधर्म के विरुद्ध है। हई मेरे फुफेरे भाई हैं।। तुम चटपट लौटो और मालवराज से मेरा नाम लेकर कहो कि वे मालवा लौट जाय। अन्याय से समुद्रगुप्त के विनष्ट साम्राज्य का उद्धार नहीं हो सकता। दूत-महाराजाधिराज ! थानेश्वर के राजा साम्राज्य के पुराने शत्रु हैं । महाराज देवगुप्त ने यज्ञवर्मा की हत्या, अवंतिवम्मी के विद्रोह और.