पृष्ठ:शशांक.djvu/३६

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( १६ ) लोटो निकालने के लिये खाई के जल में कूदा। इतने बीच में प्रती- हारों ने अपनी अपनी चारपाइयाँ फाटक के पास से हटा दी। नगर के भीतर से जिसने फाटक खोलने की आज्ञा दी थी वह अधीर होकर फाटक पर ज़ोर ज़ोर से लात मार रहा था। सब पहरेवालों ने मिलकर जब बल लगाया तब चारों अर्गल हटे और तोरणद्वार के दोनों भारी भारी पल्ले अलग होकर द्वार के प्राचीर से जा लगे फाटक खुलने पर प्रतीहारों और द्वारपालों ने देखा कि एक काला टॅगना वृद्ध अत्यंत क्रुद्ध होकर उनके सामने खड़ा है। उसे देखते ही जो पगड़ी तक न बाँध पाए थे वे तो साँस छोड़कर भागे । जो प्रतीहार और द्वारपाल रह गए वे घुटने टेक कर बैठ गए और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे। पर उस वृद्ध ने उनकी एक न सुनकर मारे कोड़ों के उनके धुरै उड़ा दिए । चार घोड़ों का रथ धड़धड़ाता हुआ तोरण द्वार के बाहर निकल गया। तेली लड़के और गदहे को लेकर चलने के लिये उठा । उसे देखते ही पहरेवालों का पराक्रम लौट आया। वे उसे तंग करने लगे। अंत में बेचारे तेली ने कोई उपाय न देख अपने सौदे में से थोड़ा थोड़ा सबको दिया और अपना पीछा छुड़ाया। लड़के को साथ लिए वह में घुसा। देखा तो राजपथ जनशून्य सा हो रहा है; दूकानें बंद हैं। जो दो चार आदमी आते जाते भा थे वे डरे हुए दिखाई देते थे और जहाँ कोई गली पड़ती थी सड़क छोड़कर उसमें हो रहते थे। रह रहकर विदेशी सैनिकों के दल के दल कोलाहल करते हुए निक- लते थे। उन्हें देखते ही पाटलिपुत्रवाले दूर हट जाते थे और अपने घरों के किवाड़ बंद कर लेते थे। दूकानदार दूकान छोड़ छोड़ कर भाग जाते थे। नगर की यह अवस्था देख तेली के प्राण सूख गए और वह झट राजपथ छोड़ एक गली में हो रहा। उस अँधेरी गली में चलते चलते वह एक झोपड़ी के सामने पहुंचा और किवाड़ खट- नगर