पृष्ठ:शशांक.djvu/६०

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प्रभा०- ( ४० ) कहना हो तो पट की ओट में बुलाकर कहना। तुम्हारे कर्मचारियों ने तुमसे क्या क्या कहा है ?" -"एक सैनिक ने मार्ग में एक सुंदर दासी मोल ली थी। उसे देखकर नागरिक कहने लगे कि वह नगर के एक बनिये की लड़की है। उसी दासी के पीछे सैनिकों और नागरिकों में झगड़ा होने लगा। इसी बीच कुमार शशांक वहाँ पहुँचे और मगधसेना का एक दल लेकर थानेश्वर के निरस्त्र सैनिकों पर टूट पड़े और उन्होंने उन्हें मारकर शिविर में आग लगा दी । नगर के दूसरे पार्श्व से जब तक हमारी सेना पहुँचे-पहुँचे तब तक सारा काम हो गया।" महा-तुम्हारे कर्मचारियों ने तुमसे जो कुछ कहा है सब झूठ है । किसकी बात सच है यह अभी तुम्हारे सामने दिखाती हूँ। ताली बजाते ही पट हटाकर एक वृद्ध परिचारक घर में आया । महादेवी ने उससे कहा -"महाप्रतीहार विनयसेन को तो भेजो।" परिचारक दो बार प्रणाम करके बाहर चला गया और थोड़ी देर में फिर आकर खड़ा हुआ। उसके साथ एक उज्वलवर्मधारी पुरुष ने आकर द्वार पर से प्रणाम किया। वे ही महाप्रतीहार विनयसेन थे । महादेवी ने उनसे पूछा “पाटलिपुत्र के मार्ग में जिस सैनिक ने दासी मोल ली थी उसका नाम क्या है ?" विनय-चंद्रेश्वर | वह जालंधर की अश्वारोही सेना का है। सहा० -उसे यहाँ ले आओ। महाप्रतीहार दो बार अभिवादन करके निकले। फिर परदा उठा और महाप्रतीहार चंद्रेश्वर को लिए आ पहुँचे। महादेवी ने हँसते- हँसते पूछा “तुम्हारा नाम क्या है ?"

  • महाप्रतीहार = नगररक्षक, पुररक्षकों का नायक । कोतवाल ।