पृष्ठ:शशांक.djvu/९९

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( ७६ ) बच्चों के गिड़गिड़ाने और स्त्रियों के आँसू बहाने पर गुझे कभी विचलित होते देखा है ? तुम मुझे व्यर्थ धिक्कारते हो। मुझे पूरा निश्चय है कि शशांक मेरे हाथ से नहीं मारा जा सकता। स्थविर ! वह अब बच्चा नहीं है, युवावस्था के किनारे आ रहा है। मुझे उसके मुख पर राजसी गंभीरता दिखाई दी। डर उसे छू नहीं गया है। वह सब प्रकार से मगध का राजा होने योग्य है। तुम वृथा चेष्टा करते हो। अंग, बंग, कलिंग, गौड़ और मगध में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी गति रोक सके।" इतना कह कर वृद्ध बैठ गया । स्थविर के मुँह से कोई शब्द न निकला। बहुत देर पीछे स्थविर ने धीरे से पूछा "तो क्या गणना मिथ्या है ?" "गणना को मिथ्या कैसे कहूँ ! गणना में तुमसे कहीं भूल हुई होगी।" "अच्छा ठहरो, मैं फिर से गणना करके देखता हूँ"-यह कह संघस्थविर ने दीपक की बची उसकाई और ताड़ पत्र, लेखनी और मसि लेकर वह गणना करने लगा। आधे दंड के उपरांत किसी ने आकर बाहर से मंदिर के द्वार की संकल खटखटाई । वज्राचार्य ने पूछा "कौन है ?” द्वार पर से वह व्यक्ति बोला "मैं हूँ, बुद्धमित्र ।" कपोतिक संघाराम* से एक बहुत ही आवश्यक संवाद लेकर दूत आया है, वह भीतर जाय ? वज्राचार्य-कह दो, थोड़ा ठहरे। बंधुगुप्त सिर उठा कर बोला "गणना कभी मिथ्या होने वाली नहीं। आज दोपहर तक शशांक का मृत्यु योग था, किंतु नक्षत्र के प्रतिकूल होने पर भी सूर्य की दृष्टि अच्छी थी।" 2

  • कपोतिक संघाराम-पाटलिपुत्र नगर का एक प्राचीन बौद्ध मठ जो सम्राट

अशोक का बनवाया हुआ था।