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शिवशम्भु के चिट्ठे


तमाशेके सिवा दिनमें और नाच बाल या निद्रा के सिवा और रातको कुछ करना न पड़ेगा। पर सच जानिये कि आपने इस देश को कुछ नहीं समझा। खाली समझने की शेखी में रहे और आशा नहीं कि इन अगले कई महीनों में भी कुछ समझें। किन्तु इस देश में आपको खूब समझ लिया और अधिक समझने की जरूरत नहीं रही। यद्यपि आप कहते हैं कि यह कहानीका देश नहीं, कर्त्तव्य का देश है, तथापि यहांकी प्रजाने समझ लिया है, कि आपका कर्त्तव्य ही कहानी है। एक बड़ा सुन्दर मेल हुआ था अर्थात् आप बड़े घमण्डी शासक हैं और यहां की प्रजा के लोग भी बड़े भारी घमण्डी। पर कठिनाई इस बातकी है कि दोनों का घमण्ड दो तरह का है। आपको जिन बातों का घमण्ड है, उन पर यहां के लोग हंस पड़ते हैं; यहांके लोगों को जो घमण्ड है, उसे आप समझते नहीं और शायद समझेंगे भी नहीं।

जिन आडम्बरों को करके आप अपने मन में बहुत प्रसन्न होते हैं कि बड़ा कर्तव्यपालन किया, वह इस देशकी प्रजा की दृष्टि में कुछ भी नहीं है। वह इतने आडम्बर देख-सुन चुकी और कल्पना कर चुकी है कि और किसी आडम्बरका असर उस पर नहीं हो सकता। आप सरहद को लोहे की दीवार से मजबूत करते हैं। यहां की प्रजा ने पढ़ा है कि एक राजा ने पृथिवी को काबू में करके स्वर्ग में सीढ़ी लगानी चाही थी। आप और लार्ड किचनर मिलकर जो फौलादी दीवार बनाते हैं, उससे बहुत मजबूत एक लार्ड कैनिंग बना गये थे। आपने भी बम्बई की स्पीच में कैनिंगका नाम लिया है। आज ४९ साल हो गये, वह दीवार अटल-अचल खड़ी हुई है। वह स्वर्गीया महारानीका घोषणापत्र है, जो एक नवम्बर १८५८ ई॰ को कैनिंग महोदयने सुनाया था। वही भारतवर्षके लिए फौलादी दीवार है। वही दीवार भारत की रक्षा करती है। उसी दीवार को भारतवासी अपना रक्षक समझते हैं। उस दीवारके होते आपके या लार्ड किचनरके कोई दीवार बनाने की जरूरत नहीं है। उसकी आड़में आप जी चाहे जितनी मजबूत दीवारों की कल्पना कर सकते हैं।

आडम्बरसे इस देशका शासन नहीं हो सकता। आडम्बरका आदर इस देश की कंगाल प्रजा नहीं कर सकती। आपने अपनी समझमें बहुत कुछ किया; पर फल यह हुआ कि विलायत जाकर वह सब अपने ही मुंहसे