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शिवशम्भु के चिट्ठे

क्लेश पाकर मरनेपर भी क्या कभी वह लोग यह कहते हैं कि पापी राजा है, इससे हमारी यह दुर्गति है? माइ लार्ड! वह कर्म्मवादी हैं। वह यही समझते हैं कि किसीका कुछ दोष नहीं है, सब हमारे पूर्व कर्म्मेंका दोष है! हाय! हाय! ऐसी प्रजाको आप धूर्त कहते हैं!

कभी इस देशमें आकर आपने गरीबोंकी ओर ध्यान न दिया। कभी यहांकी दीन भूखी प्रजाकी दशाका विचार न किया। कभी दस मीठे शब्द सुनाकर यहांके लोगोंको उत्साहित नहीं किया—फिर विचारिये तो गालियां यहांके लोगोंको आपने किस कृपाके बदलेमें दीं? पराधीनताकी सबके जी में बड़ी भारी चोट होती है। पर महारानी विक्टोरियाके सदय बर्तावने यहांके लोगोंके जी से वह दुःख भुला दिया था। इस देश के लोग सदा उनको माता-तुल्य समझते रहे। अब उनके पुत्र महाराजा एडवर्डपर भी इस देशके लोगोंकी वैसी ही भक्ति है। किन्तु आप उन्हीं सम्राट एडवर्डके प्रतिनिधि होकर इस देशकी प्रजाके अत्यन्त अप्रिय बने हैं, यह इस देशके बड़े ही दुर्भाग्यकी बात है! माइ लार्ड! इस देशकी प्रजाको आप नहीं चाहते और अब प्रजा आपको नहीं चाहती, फिर भी आप इस देशके शासक हैं और एक बार नहीं, दूसरी बार शासक हुए हैं। यही विचारकर इस अधबूढ़े भंगड़ ब्राह्मणका नशा किरकिरा हो जाता है!

('भारतमित्र', २५ फरवरी सन् १९०५)


[६]
एक दुराशा


नारंगीके रसमें जाफरानी बसन्ती बूटी छानकर शिवशम्भु शर्म्मा खटियापर पड़े मौजोंका आनन्द ले रहे थे। खयाली घोड़ेकी बागें ढीली कर दी थीं। वह मनमानी जकन्दें भर रहा था। हाथ-पांवों को भी स्वाधीनता