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शिवशम्भु के चिट्ठे


से श्रीमान् ने देखा, उनमें इस देशकी बातें ठीक देखनेकी शक्ति न थी।

सारे भारतकी बात जाय, इस कलकत्ते ही में देखनेकी इतनी बातें हैं कि केवल उनको भलीभांति देख लेनेसे भारतवर्षकी बहुत-सी बातोंका ज्ञान हो सकता है। माइ लार्डके शासनके छः साल हालवेलके स्मारकमें लाठ बनवाने, ब्लैकहोलका पता लगाने, अखतरलौनीकी लाठ को मैदानसे उठवाकर वहां विक्टोरिया-मेमोरियल हाल बनवाने, गवर्नमेन्ट-हाउसके आसपास अच्छी रोशनी, अच्छे फुटपाथ और अच्छी सड़कोंका प्रबन्ध कराने में बीत गये। दूसरा दौरा भी वैसे ही कामों में बीत रहा है। सम्भव है कि उसमें भी श्रीमान् के दिलपसन्द अंगरेजी मुहल्लोंमें कुछ और बड़ी-बड़ी सड़कें निकल जायें और गवर्नमेण्ट हाऊसकी तरफके स्वर्गकी सीमा और बढ़ जावे। पर नगर जैसा अंधेरेमें था, वैसा ही रहा; क्योंकि उसकी असली दशा देखनेके लिए और ही प्रकारकी आंखोंकी जरूरत है। जब तक वह आंखें न होंगी, यह अंधेर योंही चला जावेगा। यदि किसी दिन शिवशम्भु शर्म्माके साथ माई लार्ड नगरकी दशा देखने चलते, तो वह देखते कि इस महानगरकी लाखों प्रजा भेड़ों और सूअरोंकी भांति सड़े-गंदे झोंपड़ोंमें पड़ी लोटती है। उनके आसपास सड़ी बदबू और मैले सड़े पानीके नाले बहते हैं। कीचड़ और कूड़े के ढेर चारों ओर लगे हुए हैं। उनके शरीरोंपर मैले-कुचैले फटे चिथड़े लिपटे हुए हैं। उनमें से बहुतोंको आजीवन पेटभर अन्न और शरीर ढाँकनेको कपड़ा नहीं मिलता। जाड़ेंमें सर्दीसे अकड़कर रह जाते हैं। और गर्मीमें सड़कोंपर घूमते तथा जहां-तहां पड़ते फिरते हैं। बरसात में सड़े-सीले घरों में भीगे पड़े रहते हैं। सारांश यह है कि हरेक ऋतुकी तीव्रतामें सबसे आगे मृत्युके पथका वही अनुगमन करते हैं। मौत ही एक है, जो उनकी दशापर दया करके जल्द-जल्द उन्हें जीवनरूपी रोगके कष्ट से छुड़ाती है!

परन्तु क्या इनसे भी बढ़कर और दृश्य नहीं हैं? हां, हैं। पर जरा और स्थिरतासे देखनेके हैं। बालूमें बिखरी हुई चीनीको हाथी अपने सूंडसे नहीं उठा सकता, उसके लिये चिंवटीकी जिह्वा दरकार है। इसी कलकत्तेमें, इसी इमारतोंके नगरमें, माइ लार्डकी प्रजामें हजारों आदमी ऐसे हैं, जिनको रहनेको सड़ा झोंपड़ा भी नहीं है। गलियों और सड़कोंपर घूमते-घूमते जहां