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शिवशम्भु के चिट्ठे


भीमकी विजय-गदासे जर्जरित होकर पदच्युति हृदमें पड़े इस देशके माइ लार्डको इस खबरने बड़ा हर्ष पहुंचाया कि अपने हाथोंसे श्रीमान्को बंग-विच्छेदका अवसर मिला। इसी महाहर्षको लेकर माइ लार्ड इस देशसे बिदा होते हैं, यह बड़े सन्तोषकी बात है। अपनोंसे लड़कर श्रीमान् की इज्जत गई या श्रीमान् ही गये, उसका कुछ खयाल नहीं है। भारतीय प्रजाके सामने आपकी इज्जत बनी रही, यही बड़ी बात है। इसके सहारे स्वदेश तक श्रीमान् मोछोंपर ताव देते चले जा सकते हैं।

श्रीमान् के खयालके शासक इस देशने कई बार देखे हैं। पांच सौसे अधिक वर्ष हुए तुगलक-वंशके एक बादशाहने दिल्लीको उजाड़ दौलताबाद बसाया था। पहले उसने दिल्ली की प्रजा को हुक्म दिया कि दौलताबादमें जाकर बसो। जब प्रजा बड़े कष्टसे दिल्लीको छोड़कर वहां जाकर बसी, तो उसे फिर दिल्लीको लौट आनेका हुक्म दिया। इस प्रकार दो-तीन बार प्रजाको दिल्ली से देवगिरि और देवगिरिसे दिल्ली अर्थात् श्रीमान् मुहम्मद तुगलकके दौलताबाद और अपने वतनके बीचमें चकराना और तबाह होना पड़ा। हमारे इस समयके माइ लार्डने केवल इतना ही किया है कि बंगालके कुछ जिले आसाममें मिलाकर एक नया प्रान्त बना दिया है। कलकत्तेकी प्रजाको कलकत्ता छोड़कर चटगांवमें आबाद होनेका हुक्म तो नहीं दिया! जो प्रजा तुगलक-जैसे शासकोंका खयाल बर्दाश्त कर गई, वह क्या आजकलके माइ लार्डके एक खयालको बर्दाश्त नहीं कर सकती है?

सब ज्योंका त्यों है। बंगदेशकी भूमि जहां थी, वहीं है, और उसका हरेक नगर और गांव जहां था, वहीं है। कलकत्ता उठकर चीरापूंजीके पहाड़पर नहीं रख दिया गया और शिलांग उड़कर हुगली के पुल पर नहीं आ बैठा। पूर्व और पश्चिम बंगालके बीचमें कोई नहर नहीं खुद गई और दोनोंको अलग-अलग करने के लिये बीच में कोई चीनकी-सी दीवार नहीं बन गई है। पूर्व बंगाल पश्चिम बंगालसे अलग हो जानेपर भी अंगरेजी शासन ही में बना हुआ है और पश्चिमी बंगाल भी पहलेकी भाँति उसी शासनमें है। किसी बातमें कुछ फर्क नहीं पड़ा। खाली खयाली लड़ाई है। बंगविच्छेद करके माइ लार्डने अपना एक ख़याल पूरा किया है। इस्तीफा देकर भी एक खयाल ही पूरा किया और इस्तीफा मंजूर हो जानेपर इस