पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/११६

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरों युद्ध मेनोकुल कीरति मंजु दसौ दिमि सन मंटन हरे । पीर वकी सिवासिंद नरेस उदंड दो भुज दंड तिहारे ॥ १-॥ १६छत्न कवि छप्प । मधु पताल मोती मराल मृगराज रेयाल मुंग । भृकुटि उरज रद चलन लैक बेनी विसाल दृग ॥ गुजत कंचन विमल तरुन सिड स्या।म विज्ञकिय । नलिन न घिय गजगन छुधित डिंत विछोहे तिय ॥ नरवर अछिद्र अनवेध सर चकित मलैं चहुँचा फिरै । कदि छत्तन छवि स्यामा निराख क्यों न लाल पाँयन परै ।१। १६७छत्रसाल राजा पन्ना के सुदामा तन हेयो तब रंक से राव कीन्हो विदुर तन हो तब राजा कियो चेरे ते । क्री तन हेयो तवं सुन्दर स्वरूप दीन्हो द्रौपदी तन हेरयो तब चीर बदो टेरे ते ॥ कहें छत्रसाल प्रहलाद की प्रतिज्ञा राखी हरनाकसि७ मायो है नेक नजरि फेरे ते । एरे अभिमानी गुरु ज्ञानी भये कहा होत नामी नर होत गरुड़गामी के हरे ते ॥ १ ॥ १९८छत्रपति कवि मोरपा ससि सीस घेरे कॅति में मकराकृतकुंडल-। काछ कछे पट पीत मनोहर कोटि मनोजन की छवि वारी ॥ छत्रपती भनि मुरली करं आइ गये तहैं कुंजघिहारी । देखतही चखलाल के बाल प्रवाल की मांल गेरे विच डारी ॥ १॥ १६६ छितिपल राजा माधवसिंह अमेठी ( मनोजलतिकाट्रन्थे ) यू िउठीं कोकिलानजि उठी मेौंभीर ठोलि उठे सौभ १ ओके ।२ कान ३ सुगंधित ।