पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३९

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शिवसिंहसरोज

१२० शिवासिंदसरोज़ उ. मुनि रॉव सरासन कानहि पूछन दाईिन हांथ पठायो.॥ बाप कहै कस भागि चस्यो तब दाहिने उत्तर देत सुहायो । ठाकुरराम कहे यह अहूं तोरदि की घरि देईि चढ़ायो १॥ २५४ठाकुप्रसाद त्रिवेदी अलीगंज (२) कल करंबा बिषित माल विभूषित भूति मनोहर अंग । अन औषाकृत व्यकृत बेष ल' छवि साँ सिर गझंतरंग ॥ तंत्र में रूप में रेख. असे ब्रिलोकत होते महांमद भंग । भले हित लांगेि तमोगुन यागेि रौ मेन पारबतपति संग ॥ १ । २५५. ढाउन कवि ऊधो चले हैं जोंग को आँखन कान्हहि आँखन जी दुखिया हैं । झूठे सबै दधि माखन चाखन दाखन खात सुने खुखिया हैं ॥ सोवत सो घaले मनितांछन भूलिगे ढाखन की रुखियाँ हैं । खाँसत जे सिर मोर के पाँखन ते अब लाखों के मुखिया हैं।ili ‘बोलि गयो का गं बड़े.भोर आ गगन में अंगनउपें|ि अनुराग’ सरत हैं । बाँहन बहाली बड़े बाबू बंद ऋटि जात छुटि जात जोरा सिर सारी सरकत है ॥ नीवी निबुकाइ अधिकाइ । मुख ढाखन त्यों आतुर अनन के उरोज थरकत है । आनन-अ नंद की ललाई यानि छाई चाही अवै आज सई ऑखि बाई फरकत हैं . २ ॥ २५६. औीगोस्वामी तुलसीदासजी ( रमायण ) चौपाई. शन्दौं गुरुपदोपहुंम्परागां । पुरुचि सुबास सरंस अंद्रागां ॥ अमियमूरिमयरन- चारू,। समन सकल भत्ररुज-परिवारू॥ १ ऐश्वर्ष २ कामनाशक ।३ विकृत वे अंगूर ५ बेंत।६ बजे।