पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१४१

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शिवसिंहसरोज

२२ शिवसिंहसरोज नर सो खर छूकर स्वान समान कहो जग में फल कौन जिये ॥ १ ॥ ( सतलैया ) दोहा-आहि रस नाथन धेनु रस, गनपति द्विज गुरु बारें । माधव सितसियजनमनिसि, सतभैया अवतार 1१॥ भरन हरन अति अमित बिधि, तरवअर्थ कब्रिीति । संकेतिक सिद्धांतमत, तुलसी बदन बिनीति ॥ २॥ बिमल बोध कारन सुमक्ति, सतलैया मुखधाम-। गुरुमुख पढ़ि गति पाइ हैं, बिरति भक्ति अभिराम 1३ ॥ ( इतुमडाहक ) झूलना जयति हनुमान बलवान पिंगाच्छ उचि. कनकगिरिसरिस ततु रुधिरधीरें । अंजनीपुत्रन सियराममिय कीसपति दलन निसिचर कटक बिकट बीर ॥ दहन सरिबन महाबुष ज्ञानघन सुजस कहि निगम सख सुमात थीरं । समुझि भुजजोर कर जोरि तुलसी कहै हरहु दुख दुसह भविषमपीर ॥ १ ॥ ( एमलका ) दोरामराज राजत सकल: धर्मनिरत नर नारि । राग न रोष न दोष दुखसुलभ पदारथ चारि ॥ १ । ( विनपत्रिका ) राग बिलावल माता लै उछंग गोबिंदमुख बार बार निरस्क । पुलकित तन आनंदघन छमछन मन हरखें । । पूछत तुतरात बात मातह जदुराई । अतिसंय सुख जाते तोईि मोहिं कई ससुझाई ॥ देखत तव बदनकमल मन अनंद होई। १ पिंगलने। २ राषण का यारा । ३ वेद । ४ , अर्थकां। मोक्ष । ५ अत्यंत ।