पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिबूसिंहसरोज ११ देवीराम माशूक को हिंद में डारिके गिई के देख चौगिर्द एफै। १ ॥ ३१०दयाल कवि, दीनदयाल बंदीजन चेत्ती के महापात्र भौनबूके पुत्र गोरे गात गेंद से रॉसे गदकरे गोल ग़जब गुजारत में गरी के उरोज है । सफरी ‘सुमेरसिंग सीफर संरीफ़ा के संपुट सरोज रोज दूनी दुति रहे वे ॥ भनत दयाल की गुरिद गोला गोलिव हैं कनफकल स नीलमनि ते जड़े हैं औ.। कामचकवे के कसे कंडकी नगारे की कुंदेर के सिंधौरा की सुघर नट वटा वे ॥ १ ॥ ३११. धनसिंह कवि तोही साँ बनारस विहार करा जौन पुर-तेरेई सुहागपुर -रखा बखानियेः अवधि तिहारी करि दिौपुर छावत है तेःपरनामे जैति पुर अनुमानिये ॥ आवै बिजनौर बातें भट्ट , दिली के बीच आगरे गुनिन धनसिंह जग जानिये ।कासमीर डोले बर उर पट नादि खोलै मनिये (सलोनीति मैनपुरी ठानिये १-॥ भोर यही चलत स्ट्रेस मानष्य सुनि मेरे दुख वाइ के गगन घन छाये हैं।ौंदक न छूटे -लाल चंलिवे को दै त्यों-त्यों-मेरो मान - ऑवं वियनझरि इलाथे। हैं: है धनसिंह महा वारिद से देखियत वारि न देतफ्ती-ल वारिद कहये11। संकटतहाने काम एकऊ न आये हाइजन आये मेरी गरज न आये हैं ।।२ ॥ ३३१२. धीरजनस्दि॰श्रीरजाइंद्रजीतसिंह गहरवार उछा देलखंडी कु-कुर्ल्डविनी को कोर्टरी में टूरि राखो चिक्र दे चिरैयन की रोकी गलियों। सारंगी “में सारंग सुनाइके प्रवीन वीना सारंग दै सारंग की क्योंति कंव मलियो ( बैठी परंज में सिंक है के करेंगी अधरपान 'मैनमद मिलियो । मोहेिं मिले प्रनियोरे धीरजर्नरिंद हो बलि चंद नेकु मंद गैति चलियो।१. .. .. - -