पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७४

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शिवसिंहसरोज १५५ ७ कलू अनियारी स्याम सारी सी लगे दिये ॥ नोने कवि कहैं बाल लाल मद माती कबू आानि करि छाती जो सुहाइ सो भंग दिये । सौरभ बल कवरी झलकें कपोलन में अल तिहारी प्यारी तुम करें दिये 11३।। सरसि-सेज विरा सरसिगनैनी देखि छवि ऐनी मेनका सी लजि जाती हैं । ल चकत लंक चतीली भार बारन के मोतिन के हान की सोभा आधिकाती हैं ॥ नोने कथि कहै सारी जरद किनारीदार ढीली ढीली वाहनि लगीली पुसफाती हैं । वला अलीगन की आाती चली जाती हाल कहे लाल लाती मै न नेक मन लाती हैं ॥ ४ ॥ ३२१. नरायनराइ कवि बनारसी । नायक नवल नीको नेह ते सु थायो गेह ताहि तकि तेहै फियो म मति जैतावरी । हाहा के नरायन निहोर कर जोरि हारे तक मो कठोर हिये दरद न आठ री ॥ हाय अघ मोंते गयो हिनू जो इमारो वह सोचन मरति नैन ऑयू बहि आष री । कौन सुनें कार्यों कहीं अब न हमरो को मेरी भटू मोहूिँ घनस्यामदि मि- लात्र री ॥ १ ॥ ईन आई काँ ते न पायो किया अरी हाय हिये में दुताले भरे । मनमोहन मो मन कादि लियो भई चाहर्ति व्याकुल लागे गरे । किहि कारन आये नरायन ना किन गायन गोल हवाले करे । घरयार विलोकि विलोकत ही छन ही बन पाँघन छाले परे ॥२ ॥ ३२२. निवा कवि जोलIहा बिलग्रांसयाली ( १ ) तोको तौ चाहती वे चित में अरु तो उन्हीं को हियो ललचावै । मैं ही अकेली न जनति हैं यह भेद सवै ब्रजमंडली गाने ॥ कौन सकोच रहो री निवाग जां तू तरसे औ उन्हें तरंसावै । १ क्रोध । .