पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७५

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१५६
शिवसिंहसरोज

१५६ शिवसिंह सरोज बावरी जो पै कलंक लग्य तौ निसैक है काहे न अंक लगावें 1१॥ पीठि दे पौड़ी दुराय कपोल को मानै न कोटि पिया जऊ जोटत । बाँहन बीच दिए कुच दोऊ गहे रसना मनही मन ओटत ॥ सोमृत जानि निवाज ट्ठियां कर सो कर है निज ओर करोटन । नीबी"बिमोचत चौंकि परी प्ग ना सी बाल बिना पे लोटत १२॥ ३२३- गुरु नानकसाहजी पंजाबबाले दोहागुन गोबिंद गायो नहीं, जन्म अकारथ कीन। नानक भजु रे हरि मना, जेहि विधि जल को मीन 1१॥ बिषयन सों काहे रश्यो, निमिष न होइ उदास। कहि नानक भ हरि मना) परै न जम की फाँस ॥ - ॥ चौपाई सुपिगे मुमिरि सुमिरि सुख पावो कलिकलेस छन माईि मिटाबो ॥ पुमि जालु विसंभर ए । नाम जपत नगनित तेि अनेके ॥ बेद पुरान समृति सुचि आखर । कीन्हे राम नाम एकाखर ॥ किन कायक जिस जिया बसावै । ताही महिमा गनि नहिं आवै ॥ का पी ए दरस तिहारो । नानक उन लैग महैि उधारो ॥ मुखमनी सुछ अद्भुत प्रभु नाम । भक्तजना के मन बिसराम ॥ ३२४. नवनिधि कवि पुख सखि गये रसना घर मंजुल कंज से लोचन चारु चितै। कहै नौनिधि कन्त तुरन्त कहो क़िती दूरि महावन भूमि अवै ॥ सरसीरुहलोचन नींर चिते रघुनाथ कही सिय सों घु वबैं। अब ही बन भामिनि पूछति हो तजि कोसलराजपुरी दिंन है ॥ १ ॥ ३२५नेवाज कधि ब्राह्मण प्राचीन (२ ) दाढ़ी के रवैयन की दो,ी-सी रहति छाती बाड़ी मरजाद २ १ नारे की गाँठ ।२ जती ।