पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७६

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शिवसिंहसरोज १५७ अब हद हिन्दुआने की । मिटि गई रैयति के मन की कसक अरु कढ़ि गई ठसक तमाम सुरकाने की ॥ भनत नेवाज दिल्लीपति: दल धकधक हाँक सुनि राजा छत्रसाल मरवाने की । मोदी भई चएडी विन चोटी के सिरन खाय खोटी भई सम्पति चर्फत्ता के घराने के ॥ १ ॥ ३२६. नेवाज ब्राह्मण (३ ) पार्टी समान कीन्हो भारथ मढ़ी में यानि वानि सिर वाना ठान्यो समर सपूत को । कोर कटि गयो हटि के न पग पाछे दो लयो रन जीति करि मात मजबूती को ॥ भनत नेवाज दिल्लीति सों सश्रादतखाँ करत बखान एती मान मजबूती को । कतल मरद्द नद सोनित सॉ भर गय करि गयो हद भगवन्त रजपूती को ll १ ॥ ३२७ नरवहन कवि भोगाँववाले पद मंजुल कल कुंज देस राधा हरि विसद बेस राका नभ कुमुद बंधु सरदजामिनी । साँवल दुत कनक अंग विहरत लखि एक- संग नीरद मनि नील मध्य लसत दामिनी ॥ अरुन पीत नष दुकूल अनुपम अनुरागयूल सौरभजुत सीस अनिर्दी मंदगामिनी ! किसलय दल चित्त सैन बोलत पिथ चाडु वैन मानसहित गति पद अनुकूल कामिनी। मोहन मन मथत मरें परसत कुच नीधि हार वेषधुआत नेति नेति कत भामिनी नखाहन मधु छ लि बहुविधि भरभरति कैलि सुरतिरसरूपनदी जगत जामिनी ॥ १ ॥ चलहि राधि सुजान तेरे हित सुखनिधान रास रपो स्याम तट कलि न्दनान्दन । निर तत जुवतीसमूह रागरंग प्रति कुतूह बाजत रिस १४ालों की अल २ अर्जुन ३इवा , ४ कामदेव।