पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८५

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शिवसिंहसरोज

१६६ शिषसिंहसरो ३५०, नीलकंठ त्रिपाठी, टिकमापुर के खरी डरभरी भरभरी उर परी रहै भरी भरी जाति ज्यों ज्याँ राति नियराति है. । मुख रसीति प्रीति सखिन सों राखत पै तन- कौ न तन में प्रतीति अधिकातिं है ।i नीलकण्ठ सोहति सकुचभरे गातन सों सुरति की बात न सु नति, अनखाति है । हिये तन ताकि कथि बने चैंगिया. की तनी पिय तन ताकि यारी पीरी परि जाति है ॥ १ ॥ तन पर भारती न तन पर भार४ तीन तन पर भारती न तन पर भार हैं ।पूजें देवदार तीन पूर्जे देवदार तीन पूर्फ देवदारती न पूर्फ देवदार हैं। नीलकंठ दारुन दलेलखाँ, तिहारी धाक नाकती न द्वार से वे नाक़ती पहार हैं । धरे न कर गोहे बहिरे नं संग रहे बार छूटे बार छूटे बार छोटे बार हैं ॥ २ ॥ ३५१. नवलकिशोर कवि सखीबेति-वृंदन के सुख कों बहक भो भाँति ति दाहक भो सौतिन की छाती को नवल किसोर नेह नाह को निबाइक भो ज्ञान को 3 माहक भो गौरंभ गुरु जाती को ॥ एरी प्रियवादिनी आमोल बोल तो इतो एक ही बिलोक्यो रीति जैसे चंद खाती को । ब्यालन को विष भो पियूष भो पपीहन को सीपिन को मुट्ठता कपूर केर्ग-पाती को ॥ १ ॥ ३२नवल कवि झतन चारापर लिखयो प्रेम है अंपार मिलन अथाह देखि धीरज उड़ात है । ‘पाती को अधार पाइ परंत सनेहसिंधु बिरह- लहरि मॉझ हियरा हिरात है ॥ तौल गुनी नौल बँधी हूंढत रतन औधि द्रति मरजि वाका ने ना थिरत है । एक बेर बचि पुनि हरि खोलि फेरि बाँचि बाँचिबचि प्रानयारी चूड़िबूड़ि जात है ।\१। 3बाल ।२ जलने वाला ३ि केल को ।