पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१९४

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शिवसिहरोज १७५ द्वारका छाप लगे भुजबूत) क श्लो फल बेद पुरानन कौन है। कांगद ऊपर छाप मुनी, जिदि को सिंगरे जग जाहिर गौन है । आए गाई हु कुंजुम की , सुहाई लौ छवि साँ उरभौन है । छाती की छाप को प्यारे पिया कहिये ियाको महातम कौन है।२॥ कंव सहेलिन के भुज मेलत खेलंत खेल खरी इफक जाम की । अंगन गगन भूषित भूपन जात कही न प्रभा पर वाम की । तो लागि कुंज ते नंदकिसोर विलोकि वही दस आतुर का की। सुदरी रूप की मंजरी वाल 8 मंजरी देखत मंजरी नाम की 1३॥ गंजम अपर मनरजन पुनीसन के भंजन धरा को भार भूमि- भरतार हैं । भरे भुजदंडन महेसखंडन उदडन के दंडल प्रखंड बलसार हैं ॥ है परताप खलखंडन उदंड महिंमंडल के मारतेंड । जगतआधार हैं । मवल प्रमथ हथ लमर समय जुत गत्थ याँ कथ दसरस्थ के कुमार हैं ॥ ४ ॥ ३७४पजनेश कवि पन्नावाले ( मधुप्रिया ) स्याम सरूप में सोहै बुलाफ सखी सतमल सुहाग ज्य लगे । ढीली होंगे मुख मोरि जुटीं गिरी जयनि मैन मर मरीज ॥ हा लगी होत बुरी पजनेस पान हूं तो मुझे यही तजवीजै । या जमैजाम या सीसा सिकंदरीयाँ दुरवीन लाँ देखिो कीर्ज ॥१ ॥ घिलौर की बारादरी जगी जोति जमुईंद की कुरसी व बीन । गनै पहिली प्रतिदीपन दीपति दीपति ते पजनेस मबीन ॥ से के रूप दिौना परी लट लागि रही ज लोयन लीन । मनो रतनाकर में रतिनाथ लिए छचि-बंसी वझावत मीन ॥ २॥ दिन तो परीको घन चेरि घहान लागे आंबाति अँधेरी है है आभा इंद्रन की । पथिक थोरी ही थोरी उमिरि अकेली a .