पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१९७

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१७८
शिवसिंहसरोज

१७८ शिवसिंहसरोज बीति गई तिथि याँ परमेस 8 और तियान की कांति म’ नहैिं । साँवरी पति सों अटकी बट की भदू भाँवरी देत गले नहिं 1१॥ घन की घमक औ बनक बकाँतिन की बीजूरीचमक करवाने सी दिखात री । ललित लतान लखियत है नदान और क़है पर मेस स्यां बहुत बेस बात री ॥ मोरन को सोर चहूं ओर होत दौर ठौर दादुर की दघोर करें तुन घात री सुखसरसावन लगे री लोग गायन को बिना मनभावन न सावन सुहात री ॥ २ ॥ ३७६, परमेश भाट सताँववाले (२ ) कोयन की कुरसी में करि कुमाचबैठीं बरुनी बरीख वीर बिलसनि बेरे हैं । पूरी प्रबीन तेई. पातुएं बिलोकियतपलकन प्यादन के बखियत फेरे हैं ॥ चारु चश्चलाई चोपदार हैं हमेस बेस कहे रमेस डीढि भौंहन के डेरे हैं । आठ माहताब भरे किम्मति किताब भरे मानत न दाब ये.नवाब नैन तेरे हैं ॥ १ ॥ बागन वागन है के पराग ठं ज्यों ज्यों बहै यह बैहरि झुकन । स्यों त्यों परी पर एड महा परंसेस डे बिरहागि भभूकन ॥ कन्त बिंदेस बसन्त समे हियरा हहरान लयो अब कन। नेहभरो सिगरे तन जारि के कैला किये यदि कैतिया क्कन 1२ ॥ ३७७मसखी कवि कौसलकुमार मुकुमार अति मार हू ने आली घिरि आई जिन्हैं सोभा त्रिभुवन की । फूल फुलबाई में चुनत दोऊ भाई प्रेमसखी लखि अई गई लतिका वुमन की ॥ चरन लुनाई इग देखे बनि आई जिन जीती कोमलाई औ ललाई पदुमन की ।चलत सुभाई मेरो हियरा डाई हाय गईि मति जाँय पाँय पाँचुरी सुमन की ॥ १ ॥ छोटे छोटे कैसे तुन अंकुरित भूमि भये जहाँ तहाँ फैलीं इंद्रबध घसुधान में 1 लहकि लहकि सीरी डोलत बयारि