पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१९८

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शिवासिंहसरोज १७है और बोलत मयूर माते सघन लतान में ॥ धुरखा धुकरें पिक दादुर पुकारें बक वाँषि के कतारें उर्दू कारे बदरान में । अंस भुज डारे रख सरजूकिनारे पेमसखी बारि द्वारे देखि पाघसवितान में ॥ २ ॥ ३७८, पुण्डरीक कवि कई पुंडरीक वे निसान फहरान लागे तोरन गुमान देखि धावनि कपीस की । आज तौ चेत क्र्यों अचेत तोहेिं मृत लायो सीता मुखदेनी लायो देवन तेंतीस की ॥ ताहि के कोर कर जोर मितु राघव साँ ना तो दस दिस गेंद खेलें दस सीस की लंका पति गूढ़ तेरी आई दसा दसमी रे दसमी विलै की आई औधपुर ई की ॥ १ ॥ ३७६, परशुराम कवि सेवा श्रीगोपाल की मेरे मन भई । मनसा बाचा कर्मना उर आन न आधे ॥ करि दएडवत सनेह सों सनमुख सिर नावें। लोचन भरि भरि भाव ों हरिदन पांडे ॥ प्रेमनेम निहवें करि हरि के गुन गावै । यह प्रताप फत परसुराम हरिभक्ति दृढ़ावे ॥ १ ॥ ३८०प्रवीणराय पातुर लड़छा दोहा-जुवन चलत तियदेह ते, चटकि चलत किहि हेत । मनमथ वारि मसाल को, टैति सिहारे लेत ॥ १ ॥ ऊँचे है और बस कियेसम है नर बस कीन । अब पता घस करन को, हरकि पयानो कीन ॥ २ ॥ बिनती राय प्रवीन की , सुनिये साह सुजान । लूटी पतरी भखत हैं; बारी बायस खान ॥ ३ ॥