पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१२

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शियसिंहसरा ११ १ दीनी जोगिनि प्रोद पुत्रयवंतन छलो गये ग्रहन गृहस कियो सनि को चित्त लड व्यालन अनंद से सँ भारति दलो गयो । फेरन फिराषत गुनिन ग्रह नीय द्वार गुनन विहीन पर बैठे ही भलो गयो । कौन कौन बातें तेरी कहीं एक आनन ते नाम चढ़- रान पै चूकनें चलो गयो ॥ २ ॥ जनम सों में ब्रजरच्छन सप में साज़ि समर सर्वे में शान जप जज जूट में । देव देवनाथ रघुनाथ पिस्वनाथ कीन्हो फूल जल दान वान बरपा अटूट में ॥ फेरन वि- चायो सुभ दृष्टि को विचारु चारु चारितू जनेन को प्रसिद्ध चचौं बूट में । अवधि अकूट में 8 गोवर्द्धन कूट में तरल त्रिकूट में विचित्र चित्रकूट में 1 ३ ॥ चंदन चहल चोवा चाँदनी चेंदोत्रा चारु घनो वनसार बैरि सींच मंहथ्री के । अतर उसीर सीर सौरभ गुलाबसीर गजब गुजारें बैग अजब अजूवी के ॥ फेरन फबत फैलि फूलन फरस तामें फूल-सी फवी है बाल सुंदर लुढ़ी के । विसद बिताने ताने तामें तहखाने बीच बैठी खसखाने में खजाने खोलि यूवी के ॥ ४ ॥ ८१२. फूलचंद ( १ ) कवि सासि सी सरोज सी नारि मनोज की सी ज्ञानन आज सी पूरन पायनि । मंजुल मती सी स्वयुचि सोभा की रसि सी. पृथ्यो विलो कनि मन लेति लरायनि ॥ एक हू न अबशुन गुन अमित विचार सव फूलचंद जाहि लखत सहज तरायनि । कमला सी चपता सी बरसने अवला सी सी सी ईश्वरी सी विरा ठठुरायनि 1 १ ॥ १३. फूलचंद (२ ) ब्राह्मण भोजवुर संधु समान उदार है फूल स्वरूप में मांनो मनोज सों ओज है । थीर धरा सर्च ऐंभीर में सागर नागर से दिनेस सरोज है । साहित्री बास बसी रनजीत की दारिद को निंत खोख़त खोज है।