पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१७

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१९८
शिवसिंहसरोज

१९८ शिवसिंहसरोज धोती किनारी की सारी सी आढ़त पेट बढ़ाय कियो जस थैला॥ बंसगोषाल बखानत है सुनौ धूप कहाय बने फिरें लैला । सान करें बड़ी साहिब की फिरि दान में देते हैं एक अर्थाता ॥१॥ ४२३ बोधा कवि एके लिये चौंरी कर छत्र लिये ए हाथ ए छाँहगीर ए दावन सफलतीं । एके लिये पानदान -पीकदान सीसा सीसी एके लै गुलावन की सीसी सीस मेलतीं बोधा कवि कोऊ वीन बाँसुरी सितार लिये लाड़िली लड़ने फूल गेंदन की भूलतीं। छोटे ब्रजराज छोटी रावटी रंगीन तास छोटी छोटी छोरी अही रन की खेलतीं ॥ १ ॥ ४२४, चोध कवि ‘परम प्रसिद्ध की प्रति सतबुद्धि की सदाई रिद्धि सिद्धि की घमैस मचिवो करें । पूरन पसार पसरत पुन्यवारे भारे गुनिन के द वेदानी बचिवो करें ॥ भमैं बोध कवि छवि देखत छकित होत एक छन मन न जुदाई चिो करै । देवेंटिनी के तट अंगन तरंग संग रातोदिन मुकुति नटी सी नचिवो करै ॥ १ ॥ अ४२५, बोघीराम कवि ऐसे अनियारे मानो समुद करे भारे मानौ मच्छधारे सोये मैन मतवाले हैं । काजर से कारे खरसान से उतारे कारीगर के सँवारे सो बिरहवान मारे हैं ॥ फुट जयनिका से निफति के चोट कहै कवि बोधी ये बिरहज्वाल मारे हैं । ऐसे अति तीखे नैन वानन बिपाइ राबौ मैह की मगर सो करोर मारि डारे हैं ॥ १॥ २६, बुद्धिसेन कवि वारी औ लैगार नाऊ. धीमर कुम्हार काछी खटिक दहँधी ये इज़र को सुहात हैं । कोल गाँड़ यूजर अहीर तेली नीच सर्वे पास १ लड़कियाँ ।२ घमासान ।३ गंगा । ४ भाट।