पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१९

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शिवसिंहसरोज

a a 9 शिसिंहसरोज माल धरे सुमन विसाल हाल लाल चंलि देखौ आज बाल की बहार है ॥ १॥ उतै उयो तारन समेत तारापति इसैं मोतिन जटित लट आनन में अरी है । उतैअंक सोइत कलंक दिन पूनम के इ आड़ अंजन की वैसी छवि करी है ॥ बिंदादतकहै उनं लक्त चकोर इतै चओोर सखिन की डीठि पुख भरी है । नंदलाल पास प्यारी को विलोको चलि चन्मुखी चन्द्र साँ कैसी होड़ 'पर है ॥ २ ॥ ४३० ब्द कवि रस आनुकूल गुन जामें मुनि झलकृत नाहीं ज़तिभंग है रुचिर आति बंदगति : जाको पान करत बदन कवि सुधा कौन कामिनी अघर मधु माडरी हूं ना रुचति : जो पै ऐसे बचन की रचना के जानें तो निसंक सुख को कवित्त कहि दृहै प्रति नाहीं तो सभा में आइ आगे कविन के तू आपने कलुष से करेले सो निकाले प्रति 1 १ । ४३१ बंदन पाठक कासीवासी ( मानसशंकावली ) दोहा-श्रीसीता श्रीरामपद, पदुम बन्दि त्रयोंत । धाम नामलीला ललित) श्रीहनुमत आदात ॥ १ ॥ श्रीगिरजापतिपुत्र के) बन्दों पद अभिराम । तुलसी तुलसीदास पद्दे करि के विविध प्रनाम 1२॥ श्रीकासीपति ईवरीनारायण पराज । तिहि के सुभग सनेह त, प्रगट ग्रंथ द्विराज़ ॥ ३ ॥ श्रीमानससंक सकल रही विस्त्र में छाइ । ताके उत्तरवध हित, ग्रंथोन्द्घ .सुखदाइ ॥ ४ ॥ ४३२. विश्वेश्वर कवि नीरधि चंद बधून के आनन नाग के लो अगृत्त जो होई।