पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२०

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शिसिंहसरो २०१ ती कत छार औ छीन मरै पति औ गार को अधिकार न सोई ॥ पंडित देव प्रवीन कवीन जो अपनी भूल कहै सब कोई । जान्यो विसेसर ईसरदास के कंठ में वास पियूष को हैोई ॥ १ ॥ जानें निदान निबट विधान सो नारी को लच्छन रोग अपार है। ऑषि रूप सवाद विवेक सो पानी औ पौन को भूमि विचार है । दून पाग औ पाक ध्रुतदिक ऋन रसादिक को मत सार है । झोई जसी हु धनन्तर के सम जानौ बिसेसर चंद उदार है ॥ २ ॥ ४३३. चिदुप कधि कुन्ती पांचाली दमयन्ती तारा सकुन्तला की अहिल्या ईं मन्दो- दरी पहिले सुधारे हैं । मैनका वृताची रंभा मंजूथोपा उर्चसी तिलो तमा को तिल हू ने हल्की निहारे हैं ॥ विदुष मुफव भवें गिरा रमा उमां राधा मोहिनी टू रचि फिरि मन में विचारे हैं। सिया को बनाय विधि धोयो हाथ जामो रंग ताको भयो चन्द कर झारे भये तारे हैं ॥ १ ॥ राधा स सिंगार हास रस चोरी माखन की मोहन को गोभी गही भयो ताको पति है । जननी के वन्धन में करना करी है बहू रिस करि काली को कचरि मान हति है । बिदुप कहत बीर करिके पछारन में भीत कंस दिये घिन पूतना में अति है । अदभुत बचरा औौ बालक बने हैं आप सवस बिरग करि कही ग्रंत गति है ॥ २ ॥ ४३४. बेनी प्राचीन (१ ) असनीवाले विद्युत बिलोफत ही एनिमन डोल उठे घोति उठे बरैही विनोदभरे बन बन । आकल विकल है बिकाने रे पायिक जन उर्द्धमुख यातक अधोख मरा लैंगन ॥ बेनी कवि कहत मही के मड़ा भाग भये सुखद सँजोगिन घियोगिन के ताबू तन 1 कंजपुंज १ सरस्वती। २ आकाश । ३ मोर । वे नीचे को मुख किये। ५ . ससमूह । h -