पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२३

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२०४
शिवसिंहसरोज

२०४ शिवसिंहसरोज है आपसोस न रोस करो बिन हौस लता रदि रूखन सों भिरि ॥ बेनी पपीहन मोरन हू हहरान न चूँदि करें बहुते फिरि । ज्यों डरसैं तपे बिजुरी परै का बियोगिनी मै न कहूँ गिरि /११॥ बाँधे द्वार का करी चतुर चित्त का करी सो उमिरि दृथा करी न राम की कथा करी । पाप को पिनाक री न जाने नाक ना करी सो हारिल की लाकरी निरंतर ही ना करी\ ऐसी सूमता करी न कोऊ समता की सो बेनी कविता की नकासतासता करी न देव-अरचा करी न ज्ञान चंरचा करी न दीन मै दया करी न बाप की गया करी ॥ १२ ॥ बदनसुधाकरै उघारत सुधाक मकास बसुधा करै सुधाकरै पुधा करें । चरन घरा धर्ग प्नालाज धराएं घु ऐसे अधरा औरै ये बिंब अधराधड़े ॥ बेनी ढग हा करें निहारत कहा क ई वेनी कविता करें त्रिवेनीसमता करें । पुरत में सी करें मेहमै बसी करै बिरंचि हूं जसी करें 8 सौतिन मसी करें ॥ १३ ॥ ४३५ बेनी कवि (२ ) बैंतीवाले भाट सुन्दर सुगन्धदार रेस को न तेस कॉं स्वाद सरस्साये हैं सदाई मुखसाज के । अमृत भरे हैं पीत अरुन हरे हैं जब कर में करे हैं और सेवा कौन काज के ॥ बेनी कषि कहै कौन दीन्हो कौन पावै सदा गुनन को गावै जे टिकैत सिरताज के । घरे धरि पाल हैं। सो भेजे महिपाल हैं सो निपट रसाल हैं रसाल महराज के ॥ १ ॥ दंडत अदंड खल खंडत अखंड औ उदंड भुजदंड बर बीरता के बाने के । गंठबर गनीमन के गरख विलाइ गये छाइ गये प्रवल प्रताप मरदाने के ॥ बेनी कवि कहै खुसी खलक खुदाय जा हिमति की एवं सब बातन बखाने के । गाजुदीनहैदर बहादुर नाव देखो होत या जमाने को सकून हिंदुवाने के ॥ २ ॥ बाजी