पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२७

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शिवसिंहसरोज

२०न शिवसिंहसरोज ७३६ बलदेव कवि (२ ) चरखारी के सुचि सरबज्ञ है कृतज्ञ पंचजज्ञकारी बैन-अनुसारी उपकारी गुन सिंधु है । परम सपूत सानदारन घरमधुर परम प्रसेंस निजबैंसआर बिंद है । कद बलदेव जो कहत निवहत सोई सहित समुद्र माँह

  • भरत मुनिंद है । रामपदभा माँह आठौ जाम राचो है पेंच

विजमोहन कघिन में कबिंद है ॥ १ ॥ ४४०. बीर कवि (१), दाऊदादा बाजपेयी मंडिलाषाले ( प्रेमदीपिका ) तिय झुमति झूम लौं आवाति है गुन गाबति है मन भावन के । ऊँचे भूटान के विज्जुछटान के ठाट बँटे दध भाषन के ॥ शूमि रही मथुरा वृंदगाँव मनों घुमड़े घन सावन के । है वीर मनोरथ केयो क मग हेरति है पिय आघन के ॥ १.॥ तेरी यह वानि देखी निषट कठिन खोटी जौन तू सिखायें बीर भावै मोहैिं नाहिने हैं तो सिद्धिदायक सकल पुरबासिन के इनको जहान पूरे मोहैिं परवाहि ने ॥ जाको धरि ध्यान पीब रहो ना छनक एक पूजने की कहा नाम ली अब नाहिने । सुवि करि गौरि को न पूजन करन पाऊँ बार बार कहत गनेस देखौ दाहिने ॥ २ ॥ ४४१ बीर कवि (२ ) कायस्थ दिल्लीवाले ( कृष्णचंद्रिका ) घुमड़ घुमईि आये बदर उमईि घाये साँघरे विदेस छाये औसर करारे में। दादुर पपीहा मोर सोर चहूं ओर करें मारत मरोर उठि कामैजर जारे में ॥ धूम जलधारें करें उठंग सलिल स, गाज की गजब म’ वैसे मतबारे में । के ऋकि जाती चढ़ी धूलि ऋलि गाती देखि फाटे वीर छाती हा कुटर भय भारे में। S १ आद्रत ।२ काम का ज्वर ।