पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२८

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मित्रा नसरोज २०३ है. पुंज गलीग अलीगन में चली आधत श्रीपभानुदुलारी । ताईि ष्टि :ोक के रंगभरे छल ों लिपि के रहे ज़्नचिट!री ॥ शिमा बान्यो उतन को तकि पानि- सरोज ली तर्षद नियारी । जानि है कर : दसा उर मुनि बजी वह एक ही हंध की तस्री । अf वाले नियो जिया सु चयो रसरंग अनंग के जाम ! गईं निमोड़ चवाई बुरी है कहाँ लगि स्टूटिये बातर भागे ॥ .ति पर िक बात सगेन में जाइ चुके तिय पाँयन माँगे । कोर्ट में यूं तुम्हें विगरेंगी जु टोकौगे धूलि हू काहू के प्रागे । ॥ नेr -कायथल श्रीवासतव, उत्तम उत्तमचंद । ममाद भयो तनय , त। महामतिमंद ॥ १ ॥ टार प्रिनिधिसहित) लिखि संवत्सर जा।ि चन्त्रवार एकादली, माघ नदी उर आानि ॥ २ ॥ निगमबोध सुभ क्षेत्र जहूं, कालिंदी के तीर । इंद्रमस्थ पुर संत लखि, इंद्रपुरी मनि बीर ॥ ३ ॥ करो जथा मति आपनी, कृष्णचन्द्रिका ग्रन्थ । जै सो छ बताइ गे, पूष पंडित पंथ ॥ ४ ॥

४४२. ब्रजद कांये इला भई कोयल ऊरंग बार कारे किये छुटि कृटि केडरी कलंक लैंक दहली । जरि जरि जखूनद ड्रग गा बदरंग होत अंग फाटो दड़िम ख़्चा भुजंग बदली ॥ एरी चंदखी तू कलंकी कियो चंद हू को बोले ब्रजचंद ों किसोर आप अदली । छार पूड़ बरें गजराज ते पुकार करें पुंडरीक चूड़यो री कपूर खाया काली ॥ १ ॥ होत ही प्रात जो घात करे निंत पासपरोसिनि सों कल गाढ़ी । १ ग.। २ कसर । ३ सोना। ४ अनार ।. ५ केबुल ।