पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२३१

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शिवसिंहसरोज

२१२ शिवसिंहसरोज । ४४६, बलभद्र कायस्थ पावले (२) करनी कड पूरब कीनी बड़ी बिड कौने ढंजोग ठ जीबो करें । हुलझे विलफै लनी में है ताकि सीतिन को सुख लीबो करें । निसि-बासर पीतमनैनन को बलभद्र बड़ो सुख वीबो करें । मतगारो भयो नथ को पुर्कता अधरा को आमीरस पीवो करें 1१॥ मंजुल मुकुट के निकट परीक रखो, उत ते उत्वटि लोन लटन में लटि गो । कहै बलभद्र लोनी लट ने उाटि फेरि ग्रीत्रा कल कैठ की निकाई में सिमटि गो ॥ धूलो मूल फिरो फेरि औईसी भुजन बीच अंगुरीन नाभी ते अचाक आइ बैटि गो। कटि को न आयो मन अटको निपट आाली कटि के निकट पीत१ट में लंटि गो ॥ २ ॥ हीरन के हारे ते सरस माहताब) माहुत ब से सरस घन सार को बरस है । कहै बलभद्र घनसार ते सरस हिम, हिम ते सरस सो सुहायो हासरस है । हासरस डू ने खुद सरस पियूष) औ पियूर्ष ते सरस कलानिधि को दस है । परनापुरंदर महीपति पतिसिंह जस तिहारो कलानिधि ने सरंस है ॥ ३ ॥ ४४७ ब्रज लाला गोकुलप्रसाद कायस्थ बलरामपुरवाजे (दिग्विजयभूषण ) गनपति गोरि गिरीस गिरा विधि रमा रमापति । राजराज पुरराज सप्तऋषि पांघन जंलपति ॥ राहु केतु समि भौम सुक्र बुध गुरु रबि निसि१ाति । मच्छ कोल कदि कच्छ सिंहनर बामन भृगुपति ॥ सिय रामचंद ब्रजचंद प्रिय बौद्ध ककी अब हरें । कहि गोकुल सुभ सब दिन संदै ये छतीस रघुछ करें ॥ १ ॥ नेह की न हानि तन मन में तिहारे प्यारे गेहूं में निहारे दीप १ अम्त ।२ सरस्वती । ३ ब्रह्मा ४ वरुण 1.५ सिंह।