पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२३२

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शुिपालसरान ) - इईए स्टार है । रान हित औौर सर्दी की है हैं बस बाके आाय मन तो मए नो यह बड़ी बात है ॥ गोकुल विलोकि वाल राबरें के न न रखीफिरिं री मागें मोहि सतरत हैं । जोन- न्न ", शद्र में ये जात खाये ववरात एक पाये ववरत है ॥ ॥ मिष्ठ क्रो दिन बयर आये देखि भई दीन चिगुनी को छला कर क्षुद में निदाल है । नत्रत बड़ाई हेतु बड़े जे मबीन ब्रज मान तई मान टित रानिनी विलास हैं । ॥ उमंगों आनंद तेरे दिये न समाय प्य: ने न जात गुन बानी साँ मकास है । दामिनी लॉ बन ले हैं न ही ला दामिनि है मेरो मन तो में तेरो मन मेरे पास है ॥ है । ( अटयाम ) जानें जति जेई जाले कंचन के बाद जामें पैहे पायजामे फवै ईट नो विज्ञास है ' पानि पाँय पायतवे मोजे पुंज मोल के जो लार्ज में न ही सात प्रतिरोज के लिवास है ॥ राजे महाराज दिग्वि- यदि जिन्ताज जड़ित जतन रतन के उजास है । माई मारतण्ड चएड एडल के आसपास मंडित नवग्रह की मण्डली प्रस हैं : १ ? ॥ चित्रकलाधर ) बैंधि गो आति बाँधत नारन मैं ब्रज तेरे सियार से वारनमैं । ववि गो चल भौंह के भारत में किरि दौो फिरे दृगतारन में। पनि गो -पानिप-धारस में घहि लागो उरोजकिनारन मैं । नएँ हेड थयो बहु बारन मैं मन मेरो हेराइ गो हारम में १ ॥ ४८ब्लद्देवसिंह क्षत्रिय, श्रीद्विजदेव और क्षितिपालतू के साहित्यशा के रु अवर सुधारे अंगराग अंग धारे दृग अंजन सँवारे कारे कज मट छीने है । भाल में विसाल लाल रच्यो है साल बाल ता विच १ शोभा । २ कपड़े।