पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२३३

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२१४
शिवसिंहसरोज

२१४ शिवहिंसरोज कुरंगमदबिन्दु चारु दीने है आरसी में रे बैठी ताही को विलांस मं बल देख उपमा सोचिसोचि लीने है । मानों सूर-अंक इंदुइंदु- अंक अरविन्द, अरविन्दअंक में मलिन्द बास कीने है ॥ १ ॥ चन्दन चमेली चोप चौसर चढ़ाय चारु मधु मदनारे सारे न्यारे रसकारे हैं । सुगति समीर मद मकरन्द बुन्द बसन पराग से सुगन्ध गन्ध धारे हैं ॥ वारन विहीन सुनि मंजुल मलिंद धुनि बलदेव कैसे पिक वारे लाज हारे हैं । फूलमालवारे रतिबद्री पसारे देखो कैत मतवारे की बसंत यों पधारे हैं i। २ ॥ ४४७. बिश्वनाथ कवि (१ ) आत्तल स चीन को सलूका आधी बाँइ तक सिर पे सनूरवाली टोयी सुबासाम है । जुल जलूस चारिबाग को रुमाल काँधे मायामदअँध देत लेत न सलाम है ॥ कहै बिस्वनरंथ लखनऊ की गलीन बीच ऐसन अमीरजादे कढ़त तमांग है । चोषदार आगे इतमाम को बढ़ाबें लिए पेचवान पैदर सवारी तामझाम है ॥ १ ॥ ४५०. विश्वनाथ भाट टिाईवाले (२ ) पनसब दिल्ली से लखनऊ ते खैरखाही लंदन ते खिलति वि साति बिना सक से । भार भुजदएडन टेंभारे भुवमंडल लौं जाकी ाक थाई धराधोस धकाधक से ॥ हक सुनि हालत हरीफ़ नाकदम होत कहै विस्वनाथ अरि फिरें जाके मकसे । कहाँ लौं सराही तेरे भुज की उमाही बीर रनजीतसिंह तेरे वादसाही नकसे ॥ १ ॥ ४५१. बंशीधर कवि ३ एक और बान पंट्टेबान को गहाइ दीनो एक ओर रन अति कठिन लखावतो । दोकर वीच दोषआकर बसाई सीतभीत करें जैते प्रीति बाहर निवाहतो ॥ बंसीधर कंहै घर डगर नगर बीर लै करि समीर रोम रोमनि बसावतो 1 छूटतो न मान मंत्र तंत्र १ केसर की टिकली ।२ पसीना ।३ कामदेव । ४ चन्द्रमा । !