पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के , s शिवसिंहसरोज १७ अचल चकोर की कली हैं कोहद की सी दाड़िम भीरी कीचों फदि के पौषा हैं । श्रीफल चुझाये फिधों फोकन के साधक हैं टंग गेसिंयार की कंचन के लाया है ॥ कन की कली हैं की लंगर रूपरासिभरे जोवन के मग कि पक्ष के बंटवा हैं । अति ही कठिन हैं बचाने नाहीं जात के , प्यारी के पयोधर की काय के राता I a ॥ कान फर्इ जमाइ जटा सिर ध्यान लगाइ महान कहाये । तीरथ जारी नहीं: नदी-नद छार सों छाइ के जोग उपाये ॥ दंड सडल मंडित पानि iफेरे गष्टिमंडल मूड़ मुड़ाये । ऐसे भये ताँ कहा ज़ पे बारन जानकीजीवन जीव न आये ॥ है। ॥ ' चातक पद तीर बन्द अंज जिमि जानौ । पाथर बक ऑों सुधा जंलाका गनर बखानौ ॥ लस् नीर थकास अपनप भात्र बतायें। जाकी चईअतिथि अपुन मच्छर सुर गांई ॥ सुलतान साइंसाहेब सुजा कवि बारन यह उच्चरत । इमि ीस दास तुष स सम्र की सदा रहें सेवा करत ॥ १० । ॥ ४५३त्रजवासीदास कवि ( प चन्द्रोदय नाटक ) अंतर मलीन दीन हीन पुरषारथ सर्षों कर्मता विहीन पीन पाप की कहा कहीं चिपय अधीन और कहाँ तौं कहै प्रवीन काम क्रोध लोभ मोह मद के धका सहाँ ॥ रावरे हैं समरथ में-से खल तारिवे को अधमउधारन हो और ते न जाँचहाँ । सरल सुजान संत प्यारे की निछांवरि मोहैिं दीजे सरनागत सन्तगंग मो परो रहाँ ॥ १ ॥ से a S १ कमल लाल ।२ जोंक ।