पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४०

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शिवसिंहसरोज

४६६.बीठल कधि (३ )

परत तुषार झार उठत अपार भार द्वार भो पहार पूस आँगन लात हैं । बीछी के से छौना भरे मानहूं घिऔौना माँ दिसिहू चिब्रिमि लागे घेरे घर घात है ) वीठल सुहित अति गति मति लि जात चातक करात जब वोलै आधी रात है । विरह ने दही रात पिय विन रही रात आवै नियरत तिय जात पिय रात ६ । १ ।

४६७. ब्रह्म, श्रीराजा बीरबर

उधर उछरि भेकी छपटें उरग पर उरग पै केकिन के लपटें लहकि है । लेकिन के सुरति हिये की ना कलू है भये एकी करि केहरि न वोलत बकि है ॥ कहै कघि ब्रह्मल वारि हेत हरिन फिरें बैहरि वह ति बड़े जोर सॉ ज िहै । तरनि के तापन तथा सी भई भूमि रही दह दिसान में दागि सी दह कि है ॥ १ ॥ एक में हरि चेलु चरावत वे बजावत ऐन रसालहि । दीठि परी मनमोहन की पभानसुता उर मोतिन मालहि ॥ सो बषि ऋह लपेटि हिये कर सो कर करकज सनालादि। संड के सीस कुकुंभ के पुंज मनो पाहिरावत व्यालिनि व्यालाह।२॥

४६८.विश्वनाथ सिंह बघेले (३ ) महाराजा रीबाँ

बाजी गज सारे रथ कुंतर कतारे जेते प्यादे ऍड़वारे से सवीह सरदार के । कुंवर छबीले के रसीले राजबंसवारे सूर अनियारे प्रति प्यारे सरकार के ॥ केते जातिवारे केले केते देसवारे जीव स्त्रान सिंह आदि सैलवारे के सिकार के । डंका की धुकांर है। सवार सवे एकबार राकें वारपार द्वार कौसलकुमार के ॥ १ ॥ पाग जरकसी अँसी करेंगी याँ वसी बाँकी लंकद्वार असी लसी कसी पटछोर सर्षों ने भीजी पुख के सी मसी हँसी खासी कौमुदी. १ पाला । २ मेढकी ।.३ सोरनी । ४ शुतुर्कट । . ५ चाँदनी ।