पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४७

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज

छस्नपछ तिथि पंचमी, बरनेउ बालनदास ॥ १ it गुरुगनेस मुभ सेप मुनि, गरुड़ध्वज गोपाल । रेमलकथाषुख कसल करिचरनन की रज वाल। २ ॥ चाँसठि प्रस्म घिचारि , संकर कीन प्रकास. । तेहि मा सुख संसार कोड़े बरनत बालनदास ॥ ३ ॥ ४८९. वादेर।य बटीजन डलमऊवाले । यही ज्ञान ज्ञाता बही है मति को दाता करामात दरसता भंग संयाल लपटाइ के । गरे ग्रैंडसाल कंठ काल झं को काल ससि सहित है भाल री डपरू बजाड़ के ॥ ऐसे समै महिमा बखाने को महेस की यादेरा- ध्यायो गुन कचित बनाइ के । सकल मुमति सुख संपतिं सहित दै कैस्करे में संकर सहाइ करों ऑइ के ॥ १ ॥ ८८. चिपुलविट्ठलजी गोकुलस्थ । पद मिया स्याम लग जारी है । सोभित कनक कोल ओोप पर दसनछाप छवि लागी है । अधरत रंग छुटी अलकापति खुरत रंग अप्रैरागी है । घिइस्तविपुल कुंज की कीड़ा कामकेलि-रस पागी है ॥ १ ॥ ४८६, बिहारीदास ( ४ ) पट तू मनमोहनी री मोहन महें री अंग भंग । आगमनी अल झल बर उन पर टूटी लट मुख हँसंत लस्त दसनालि सहज भुक्कुटीर्भग ॥ मृग मधुप लीं स्याम काम सब तजे बन वेली धाम सौरभ सुरसब्द सुनत फिरत संग संग । बिहारनि दास स्वामिनी खरासि रहीति फिर चितयो मानि आर्नि उर अंगरंग आनंग ॥ १ ॥