पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४९

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शिवसिंहसरोज

१३ ० शिवसिंह सरोज हम सब दास तिहारी ब्रजपति तुम बहु निपट सयाने ॥ १ ॥ ४२वलरामदास पद मोहन बसन हमारे दीजें । वारने जाऐं सुनो हँदनदन सीत लगत तन भी ॥ कौन सुभाष अथा अनऔसर इन बातन कस जी । सुनि. दुख पार्वे महर जसोमति जाइ कहें अघ हीं है । सब अवला जल माँझ उधारी दरुन दुख न सहीछे । प्रभु बलराम हम दास तिहारी जो भावे सो कज ॥ १ ॥ ४६४विष्णुदास पद प्रात समय स्लीवल्लभयुत को परम पुनीत विमल जज स गाऊँ। अंबुजघदन 8भग नयना अति वैनन लें हिरदे बेटाऊ -॥ जवजव निकट रहत चरनन तरपुनियुनि निराखिनिररिख सुख पाऊँ। विष्णुदास म 8 करो कृपा मोहेिं बल्लभनंदनदास कहाई ॥ १-॥ ४६५. बंशीधर पद होति खरी ताँ जहाँ खेरि सॉकरी खुन्दरस्याम सलोना री। इत ते हो जात उतते वे आशत अंके पीत उसोना री ॥ हँस पुसकाय लडकि जब बोलें पूछत हैं व कोना री । हाँ सकुच मो में उत्तर न आयो इन ठग ठनी ढिोना री ॥ चित्रलिखी रहिगई ताहि छनमनु पदि डारी टोना री । बंसीधर गिरिधर पर वारी अब कुछ और न होना री ॥ १ ॥ ४६६ वृन्दायम। पद आा सखी बन ते घने आवत गावत स्याम सखागन में । १ बेवल । २ गली। ।