पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२६१

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शिवसिंहसरोज

२४२ शिवसिंहूसरोज रहीं यंग घावे घबरानी छोड़ि सेजिया सुखन की ॥ भूपन भनत घात बहियाँ न कोऊ नाक तहियाँ था थाकि रष्ठियाँ रुखर्जी की । गालियाँ सिथिल भई वालियाँ घिथलि गई लालियाँ उतरि मुगलानियाँ सुखनकी ॥ ११ ॥उलदत मद यमुमद उर्टी जलधिजल बलहद भीमकद काडू के न चाहते। प्रबल प्रचंड गैड महिएडंत मधुपझुन्द विन्ध्य से वलन्द सिन्ड सात लू के थाह के ॥ भूपन भेनत ल कंपति झपन कि झ मत क़त झहरात रथ डाह के। मेघसे घमण्डित मजेज दार तेजपुंज गुजत सो कुंजर कमाऊँनरनाह के 1१२ा। ५२०, भगवानहितरामराय पद बनेआज नन्दलाल सखि प्रेमपादक पिये संग ललना लिये जमुनती । फूली केसर कमल मालती सघन वन मन्द सुगन्ध सीतल समीरे ॥ नीलमनि वरन तन कनकमण्डित बसनपरमसुन्दर चरन परसि माला । यधुर स्मृदु हास परकास दसनावली छचिभरे इतरात दृग विसाला । ॥ किये चन्दन खौरि बदनारविन्द मकरंद लोमे भ्रमर कुटिल अललीं। हलतकुंडल लटकिचलत जब स्यामघनमनिनीकांति कल गंझल।। रसिकमान रंग भरे विहरे वृन्दावपिन संग सखिमएडली नेमपागी। कहै भगवानहितरामराय प्रभु सुमिरि सोई जानै जाहि लगनलाशी १ ५२१. भीमदास पद यदि कलि परम सुभगजन घनि श्रीविट्ठलनाथ उपासी । जो प्रकटे व्रजपति बिठलेस्वर तो सेवक ब्रजवासी ॥ व्रजलीला भूल्यो : चतुरानन वल टायो अतरासी । अब तों सठ अघ गनत अभागे करत परस्पर हॉस ॥ परिहरि सदन सदा जस गावत भक्त मुक्ति की दासी । बदत न कछ भीपम भघवैभव भजनानन्द उपासी १ ॥