पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२६८

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शिवासिंहसरोज - २४९ ५३५. माधवानंद भारती काशीस्थ ( माधवीशंकरदिग्विजय ) भद्रग्रह यशरमणीय भक्रया हमेरर्षि श्रवणी । आशुतोष श्रीहर कमनीय नौमि सदा शंकरभजनीय ॥ १ ॥ चौपाई । मंगलरति सिद्धिविधायक । विनबर्दा प्रथमहिं श्रीगननायक ॥ श्रीगिरिजा जगजननिभवानी । चरन वृदि विनवाँ सुखखानी ॥ १ ॥ ५३६. महेश कवि मुनि वोल सुहावन तेरे घटा यह टेक हिये में धर्मों मै धर्गे । मदि कंचन चच पखवन में मुकताहत दि भरौ पं भरीं ॥ मुख पींजरे पालि पढ़ाई घने गुन औगुन कोटि हाँ मैं । विडरे हरि मोहिं महेस मिलें तोर्ति काग ने हंस करों मैं करों ॥१ ॥ ५३७मदनमोहन पद हैं निसि लाल रति मानि मैं त ही जानि पग डगमग मग न परत सूखे। सिथिल बदन कवरीकेस राजत आनन सुदेस वोलत कलु लटपटी बानी ॥ यह छवि मो मन भाई मिटिहै चपलताई पीकलीक अधरन लपटानी । मदनमोहन जिंसोर रिझाये श्यामा प्यारी धनिधनि नवनिकुंजरानी ॥ १ ॥ ५३८, मंगद कवि सू न मो ’ वन वाग तड़ाग सर्वे विधि फूल पलाँसन सू । के न मे घरकांज संवी नहिं साख जेठानी की बातन सू i. १ चोटी। २ मुझको.। ३ टेसू के फूल !