पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७०

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शिसिंहसरोज २५ १ कप्त रूलासो लो कई ॥ स्योंही मताव दोई मास घर सीड बिन बैल यों कहत परदेस क्यों रह करों कीजिये दुरस न्याउ हिन्दूपति बादलह कौन को उराह तो चाँ कौन को कहो करों ॥ १ ॥ सोद्दत सजले सित असित सुरंग सुंग जीन सों द अंजन आलूप रुचि हेरे हैं । सीलभरे लसत आसील गुन साज किये लाल की लगाम काम कारीगर फेरे हैं ॥ mडट फ़रूस तामें फिरत फवित फूले लोक महताब आलोकि भये चेरे हैं। मोरचारे मन केयों पन के मरोरखारे स्परखारे तरुनी रंग दृग तेरे हैं ॥ २ ॥ ५४३. मनसा फचि पूरन करत परिपून मनोरथन मून के तुरन में क्रूरन की कंडिका । बनन के बीच उपधनन के बीच होत छापने जनन की है नीती मानतंडिका ॥ देत दलदंडिया ये दोदंड डिफा है। जाकी दिपे मारतंड कोटिन उदंडिफा । सिद्धि की करंडिका जो मनसा प्रचंडिका जो खंडन की खंडिंक्षा सो मेरी मात चंडिका ॥ १ ॥ दीपतिसिखा सी खासी मैनका तिलोत्तमा सी रतिदा सी रंभा सी सु रूपरंभा रासी है । सीतां सी सती सी सत्यभामा सी सकुंतला सी सची सी सिवा सी स्वाहा सुधा सुखमा सी है । कॉल की कली सी है कला सी हैं कलानिधि की मनसा महा सी मुखहासी में प्रज्ञासी है । संभुसालिका सी. सुरखाल-बालिका सी बाल लालमालिका सी हरितालिका उपासी है।२ चामीकरचि त्रिका सी चित्र की चरित्रिका सी पक तता सी चपला सी चारुता सी है । दुदमुता सी दमयंती सी दिमाकदार दीप- सी- दिपति देवदेवैवारिका की है । मनसा कहत: भवनैमिनी सी. भासमान वृषभानुजा सी भाभा सी भवृभा सी है । संभुसालिका १ जदंड २ देवचालिका ! ३ गौरी ।