पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७३

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२५४
शिवसिंहसरोज

२५४ शिवांस६ भाऊसिंह मतिराम कंहै जाहि साहिवी 'वतेि है । जानपति दानपति हाड़ा हिंदुयानपति दिलीपति द गति बालाचंदपति है ॥ २ 1 कैसे आासमान से विमान से या से ज रावरे चलत मानो मेरु से लसत हैं । प्रतल वितल तल लत 'लत दल गजs मद रातें दिगदन्ती चिकरत हैं । कहे गतिराम स दुरद दरराज ऐसे जिन्हें पाइ कविराज मार्गाद भरत हैं । कुंभ छा पटैपद मद्द निफरन नद कदन बद गढ़ गरद करत हैं ॥ ३ ॥ छपे जब ला’, मच्छप कोठं सहसौंख धरनिभाधर जव लगि आठौ दिसन दावि सोहत दिग्गज बर । जब लगि कवि मतिराम स-गिरि’ -सागर महिमंडल । जय तगि वरन सघन घन मगन आगन चत ॥ वृष सडकलनंदन नवल भावसिंह भूपालमने जग चिरंजीव तष लरीि खुखित कहत सकल संसार धनि ॥ ४ ॥ दोहा-वह कमान कटाच्छ सर, समरभूमि विचनैन । लाज तजे हू दुहुन के , सलज छहद सघ वैन ॥ १ । ॥ रूपजाल नंदलाल के, परि के बहुरि उर्ट न । खंजरीट प्ग मीम से, व्रजवनितन के नैन ॥ २ ॥ बानी को बसन कैधाँ बात को विलास डोलै कैधों मुख चंद चार चाँदनी प्रकास है । कवि सतिराम कैध काम को मुजस के परागपुंज प्रफुतित सुमन सुवास है । ॥ नाक नथुनी के गजमोतिन की आभा कैध रति अन्त प्रगटित हिंघ को हुलास है । सीत करिचे को पिय नैनघनसार कैधाँ वाला के बदन विलसत मृदु हास है ।-५ ॥ १ मस्तक।२भ्रमर ३ वाराह ।४ शेष नाग। ५ पहाड़ों और समुद्रों सहित ।r