पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२८१

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२६२
शिवसिंहसरोज

२६२ शिवसिंह सरोज कावित्त रस दोझा छेद जप तप तेग त्याग एक सीच तन का । महबूब उरझ न देखि सके मित्र की विचित्र हरिभाँति मैं रिया सुकतन का ॥ जासे जो कबूलै सो न भूलें भूलै माफ करें साफ दिल आकिल लिखैया हर फन का ॥ नेफी से न न्यारा रहै वदी से किनारा गहै ऐसा मिलै पारा तौ गुजारा चलै मन का ॥ २ ॥ आगे क्षेतु धारि गेरि ालन कतार ताप फेरि फेरि वे रि धौरी मरी नगन ते पोंछि पुचकारन श्रंगोछन स पछि पॉछि चूमि चारु चरन चलानें सुबचन ते ॥ कहै महबूब धरे मुरली अधर वर ढूंकि दई खरज निखाद के सुरन ते । अमित आनंद भरे कद छवि दवत मंद गति आावत मुकुंद शृंदावन ते ॥ ३ ॥ ५५८, मनीराम कवि (१) बह चितघानि वह सुंदर कपलबुति वह दसननि छधि विजुचु की धरति है । वह ऑोठलालों व नासिता-सफोरनि में वह हाव भाव कैयो कौतुक करति है ॥ कहै मनीराम छवि बरनि स को यह रति ते सरस मेन मुनि को हरति है । वह मुसानि जुग भी हानि कमान दुति बह बतरानि ना विसारी विसरति है ॥ १ ॥ ५५६, मनीराम मिश्र कन्नौजवासी (२) ( छत्रछपनी पिंगल ) एक कर्मी के अंत को अंक चवर्ग के है मनीरुम गनीजै । चार वर्ग के बीच बिना तजि जानि थकार पवरी न करें ॥ तीन यवर्ग के छाँड़ रकार ते और फार हकार से की । वर्नन कीन धिचारि के चित्त थे मित्त कवित्त के आादि न दर्ज ॥ डर व झ ठ ठ ढ ण थ प फ़ व भ म र ल व ष ह । ५६०, मनीराय कवि सोने को जराष को न जानो जात हीरन को मोतिन को पन्नन . T - १ बिजली ।२ तमाशे ।