पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९५

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शिवसिंहसरोज

२७६ शिवसिंहसरेज ५६है. मनियारसिह कधि क्षत्रिय काीनियाली (हनुमत ध्वीसी ) अभय कठोर वानि सुनि लछिमन की मारिये को चाही जो सुधारी खल तरघारि । यार हनुमंत तेहि गरजि हास करि उपटि पकरि ग्रीव भूमि से परे पछारि ॥च्छन लपेटि फेरि दंतन दरदराइ नखन बकोटि चोंथि देत महि डारि डारि । उदर बिदारि मारि लुत्थन लोटारि चीर जैसे गृगराज गजराज डांगे फारि फारि ॥१ ॥ सोरठा-छत्रविर मनियार, कासीवासी जानिये । जाऐं पवनकुमार , दयावंत सुखमद सदा ॥ १ ॥ मृगपद मंजुल पास, सर तट पुरसरि निकट । बलिया नगर निवास, भयो कछुक्त दिन ते सुमति ॥ २॥ ( आपासदलहरों ) तेरे पद पंकज पराग राजे राजेस्वरी बेदघंदनीय विरुदावली बढ़ी रहै । जाकी किठुकाई पाइ धाता ने धरित्र कियो जापै लोक लोकन की रचना की है ॥ मनियार जाहि विष्णु सबै सर्च पोपंत साँ सेस है के सदा सीस सहस मढ़ी रहै । सोई सुरापुर के सिरोमनि सदासिघ के भसम के रूप है सरीर मै चढ़ी रहै ॥ १ ॥ ६००. राम कवि ( १ ) ( रस्सरसागर ) दोहा-चित्रित दस अवतार सखि, तामें सतों कौन। बंक चिर्ता के जानकी, मुस्कानी गहि मैौन ॥ १ ॥ राधा प्यारी फागु में, गहि गहि कान्हहि लेति । दियो न में यह जानि के) फिरि फिरि काजर देक्ति ॥ २ ॥ अन्तरि च्छ गच्छत उपथ, है सपच्छ बुधचित । अच्छर प्रभु के ध्यान को, इच्छत कविता वित्त ॥ ३ ॥ कवित्त । चरचत चाँदनी चखन चैन चुो पढ़े चौंधा सो लग्य है।