पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७७ शिवसिंहसरोज चारों ओर चित चेत ना । गुजत मधु वृन्द सृजन में ठौर ठौर सर मुनि सुनि रनो परत निकेत ना ॥ राम सुने फन करेजो कसकत आाली कोकिल को कोऊ मुख Oदि अब देत ना। अन्त करे तारत बसन्तति बनाय हाय कन्तहि विदेस ने बुलाय कोऊ लेत ना ॥ १ ॥ दंग करि दंगल उदंगल उदंग करि मंगल के मंगल आमंगल दवाइ हौं ) धीर निधि मण्डि टूरि धारनि घमएिड घनमएडलै घमएिड घन- नांदेहि बहाइ हाँ। राम कवि- . मैं अकेला आज हेला करिदेखत सुहेला लंक ठेला लौं बहाइ हौं । महामग्रन्थ दसकन्ध के उतंग उत काटि कैंसग हार हर को बढ़ाइ हाँ ॥ २ ॥ दीरय रौतारे भारे गुंजन अचल कारे गाढ़े गढ़ कोट पट तोरत चिन के चपवन्त घन से सिंगारे वारि बरसत मुंडन उदन्त रथ रॉक रविन के।फहै रामघकस सपूत सिरमौर राना ऐसे राज देत महामन्दर छघिन के 1 बारे मन वानखारे महामयदानवारे दानवारे दानवारे द्वारे में कविनके ॥ ३ ॥ ६०१. रामसिंह कवि धावत प्रबल दल हिम्मति बहादुर को संकि सघुसाउजसे नदी नऋ ष्टि जाते । सचद नगारन के भारी गजभान के मारे खुर थारन के फनीफन फूटि जात ॥ पिजात तरनि धरनिकोन कम्पिजात दिग्गज धनेस रामसिंह मंन िजात .छुटि जात पबय सघन वन टूड़िजात छुटि जात गढ़ मठ वैरिन के टिजात ॥ १ ॥ भूलि न दान कर दमरी रन में न करें किरवान जगाइस । पोतो गनाइ धरे घर में करें झूठी सो. पंचन में फुरमाइस ॥ बतें बनाइ के नोनी नई जिन जाचक को जियरा भरमाइस । राम कहै न रहै चिर चॉकस चीकने ठाकुर की कुराइस ॥ २ ॥ ६०२• रामजी कवि (१ ) बारि जात पारिजात दो पारिजात देखि प्रबल प्रताप की १घर ।२ मेघनाद । ३ सिर । ४ धनुपसमते ।५.कमल ।