पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३०४

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२८५ शिवसिंहसरोज पानिष के सृज भरे रावराना सुकवि हजारन में हैरी है । मान सिख मेरी एरी मालती न मान करु तेरे मकरंद पै मलिंद देत फेरी है ॥ १ ॥ चन्दपुख उन्नत उरोज मनियारे दृग अधर सुधारस सरादि पीजियाप्त है । गोरे गोरे गरुये नितम्ष जुग जंघ रा ल लचकली भरि अंक लीजियत है ॥ रावराना सुकवि सचिकन अमोल गोल आमल कपोल छवि देखि जीजियत है । गेंद की बेली रूपरर्सि अलवेली ऐसी नायिका नवेली सों सनेह कीजियत है ॥ २ ॥ फाग खेखेiले स्याम संग सदन सिधारी प्यारी रा दुति दामिनी सी भामिनी भरी अनन । कवि रावराना वैटि रतनसिंहासन पे दर्षभरी दफन लै भूपन सँभारे अंग ॥ चन्दपुख चंदन ते चंद की कला सी खासी कच्चन की झारिन में जल भरि लाई गंग । कोमल कपोलन ते धोवे ज्यों गुलाल-लाली स्य र होति आली अति गांव गुलाबी रंग ॥ ३ ॥ ६२७, रघुराज, श्रीवधवनरेश महाराज रघुराजसिंह बहादुर बघेले वसुधाधर में वसुधाधर में औ सुधाधर में क्यों सुधा में लगे । अतिवृंदन में अलिट्टेदन में अलिशृंदन में अतिसे सरसं ॥ हियहारन में देरहारन में हिमहारन में रघुराज ल: ।: ब्रजवारन वारन बारन वारन वारन बार बसंत बसे ॥ १ ॥ ( हनुमतचरित्र सुंदरशतक ) दोहा, —संवत उनइस से चतुर, आस्त्रिन सुदि सनि बार । , . सरदर्निमा को बन्यो, सुंदरसतक उदार ॥ १ ॥ कोई है नंदी को सराप साँचो करिचे को कैध कपिरूप धरि आये कासिका के नाथ । कोई कहे कैचौं देखि निन को १ चिकने । २ जीते हैं । ३ घर ।४ गहरा ।