पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३०५

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२८६
शिवसिंहसरोज

२८६ शिवसिंहसरोज दुख दीवो दुसहन महि कोषि आये सरयुतीनाथ ॥ कोई कहे कंध देवनाथ की पुकार सुनि भेज्यो है प्रचंड चक्र रोपित है रमानाथ। कोई कहै कैधौं सिया हेत राबनै निकेत कपिक्कुलकत कालकील भेज्यो रघुनाथ ॥ १ ॥ ६२८. राय कवि सीतल समीर आय उरन दुसील होत जगत चिहल होत वचत ने भागे ते । हाथ प॰ कंपे जायें बसनन धरे रहैं रौन कंप जाय ना रजाई तन त्यागे ते ॥ राय कवि दंपति विनोद चंदें कोर्द करें सिसिर में होत घरवाहर अभागे ते । गिन के प्रागे ते न जागे ते न बागे ने 8 सीत जात उन्नत उरो उर लागे ते ॥ १ ॥ ६२६. रनछोर कवि यदि गे अवधि ऐसे धिक मोह मेयो नादि दियो दुख देह यु तौ नेह विसरायो है । विरह की ज्वाला जाल जरि जरि उठे जीष पीष पीठ करें याँ अनंग उर छायो है ॥ आायो सामुमुत ता को तात चल्यो मिलिवे को चढ़ि चित्रसारी नारी नके चित लायो है । कहै रनछोर दोऊ मिले चारों भुजा जोरि ससुर की छाती लगे वहू सुख पायो है ॥ १ ॥ * द३०. रायजू कवि आये हैं भाव भरे नंदलाल सुभाष कर घरकाज से भावै । ऑाँकी दै नैन की सैन कयो हँस रायबू कुंजन खेल खेलावे ॥ जो बरुनी बरैनीन परै पल यूंयुट चन साठ सिखावै । ताहि न लाज सकाज कलू जरि जाइ सो लाज जो काज आ१ ६३१. रसाल कवि, अंगनेलाल भाट, बिलग्रामी ( घरवै अखकार ) यरवें-सरसम लागत सरसों सरसों फूल । १ सालती है । २ चारों तरफ़ । * यह एक कृ समस्या पूर्ति है। ३ एलक ।