पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३०६

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शिवसिंहसरोज २७ घर भेंट न बरसों बरसों दूल ॥ १ ॥ यन उपवन सब करहत करहत हाल । करहंत देखी करहंत जीवत बाल ॥ २ ॥ - खरी जु स्याम गत की न जानों कौन जात की अनेक नेक भाँति की सुभाइ भेंट है गई । वधू वधु है साथ की सुभावती है गाIत की अनेक रि हाथ की मर्नी की मौज के गई ॥ गही न जात भामिनी लजात जात कामिनी न दीटि होत सामनी दयाल है चिं गई । रसल नैन जोत्रि के विसाल भौंह मीरि के चटक चित्त जोरि के पटाक पट्ट दे गई ॥ १ ॥ ६३२ रसिकदास पद. सुमिरो नर नागर पर सुंदर गोपाल लाल । सब ही दुख मिटि जैहें चिंतत लोचन घिसाल ॥ ध्रुवा । आलफन की झलकन लाख पलकन गति भूल जात बिलासे मंद झास रदन छदन प्रति रसाल । टित रषि कुंडे न छवि गंखें छुर झलमलात पिगुच्छ कृत बस इंदु विमल बिंदु भाल ॥ अंग भंग जित अनंग माधुरी तरंग रंग घिगत मद गचंद होत देखत तटकीली चाल । रतन रसन पीत बसन चारु हार घर सिंगार तुलसि कुसुम खचित पन उर नवीन माल ॥ वजनरेस बंसदीप शृंदावन बर महीप श्रीवृषभान मान्यत्र संह न दीन जन दयाल । रसिक रू रूपरासि गुन निधान जान राय गदाधर प्रभु जुवतीजन मुनि मन मानस मरल ॥ १ ॥ ६३३. रसिया, नजीब जॉ महाराजा पटियाला के सभासद रमि के रसरीति की गैलन मार्तीि अनीति को पंथ न गाँहिये । १ रीले। २ भह का मटकना । ३ कपोल ४ शीशा ।५ मोर पंख के गुच्छ । ६ क रेंगी।७ ग्रहण कीजिए। _