पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३०८

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शिवसिंहसरोज

में अरु हैं । पूरन उरोज न स्खयम् सम् ईि सुक सों कुंजन के कोहे कहो कौने आजु पूजे हैं ॥ २ ॥ ॥ ।

६३७.राजाराम कवि

ठगी सी न ठौर चित ठोकी गई शादी हुती टैौर ही टना परी टाई है उनकी । पश्चर्बान कन्ड में रुमच रश्व रश्व भये कंड ऐसी है गई जो कांया हू कनक सी ॥ छनक में छीन भई बिगुनी ते राजाराम छबीली छरी सी परी छिति में छनक सी । वनक सी हनी पुनि फनक सी खाई मुनि स्याम को सिधारिये के तनक भनक सी ॥ १ ॥

६३८.रद्रिकशिरोमणि कवि

नागर नवल नी रसिकसिरोमनि हैं ललित त्रिभट्ठी गति केंधों सांडेयान की / पुख कह ससि सर्प दुहूँ कुल प्रगट जप्त कुविजा विदित जग कक्षा रति जान की ॥ मोहन विसासी उत्त ला उर फाँसी सी उजस व्रजवासी करें हाँसी सुखदान की । गोकुल विलासी नवलासी सी घिसारी चित दासी की घिदा सी . कलकानि कुलकानि की ॥ १ ॥

६३६. रघुनाथ प्राचीन

ग्याल सन जैवो ब्रज गाइन चरैवो ऐवो आघ कड़ा दाहिने ये नैन फरकत हैं । मोतिन की माल वारि ढा गुजमैाल पर कुंजन की सुधि आये हियो धरकत हैं ॥ गोवर को गारो रनाथ बालू याते भागे कहा भयो महसन मंनि मरकत हैं । मन्दिर हैं मम्र ते ऊँचे मेरे द्वारका के ब्रज के खरिजे तक हिये खरत हैं ।॥ १ ॥

६४०. रंगलांल कवि
छब्पै

जटित जवाहिर मल्ल रन चढ़ें दिखास दिसि हल्लिय । १ काम । २ घंघची की माला 1 ३ मंदराचल । ४ गोशाला। ५ खटकते हैं । ६ जड़े हुए।