पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३१०

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शिवासिंसरोज २११ ६४रघुराय कवि प्यारेहित काज प्यारी प्यारीहित काज प्यारे दुदुन सिंगारे तन नीके चटमट स ।जमुना के नीर तीर ।प्ति (से बातें करें सन अटकायो कल कोकिला की रट सों ॥ एत्ते रखुराइ घन घटा बहराइ ग्र। वरसन लाग्यो नान्हीं दन के ठष्ट सॉ । जौल प्यारो प्यारी को उद्घायो चाहै पीत पष्ट तौलौं प्यारी प्यारो ढाँपि लीन्पो नील पट सों ॥ १.॥ ६४५. रामकृष्ण कवि राजै मेघंडेवर जो अंवर परसि कर तेज चकबँधे होत वाहन दिनेस के । मुंडन के सीकर छुटत जब ऊध को घसन दचिन के भीगत सुरेस के ॥ लंका होत संका युनि घननात घंटा घोप चलत लचत फन सेस गुजगेस के । उड़त मलिंद गंडमंडल ते रामकृष्ण झूमत गयद फिरें कोसलनरेस के ॥ १ ॥ १४६, रतन कवि , बनारसी ( प्रेमरल ) दोहा--वह वृन्दावन मुखसदन, कुंजकदम की छाहैिं । कनकमई यह वारका, ताकी रज सम नाईि ॥ १ ॥ पतिसभा सिंहासन, जिहि तखि लजत आनंग। न िविसरत वह सखनको, गाय चरावन संग ।। । राजसाज साजे सकत, तिमि नहिं ने सुहाडूि । । मुंगमाल वन चित्र निमि, मोरमुकुट माधि माईि ॥ ३ ॥ ६४७रघुनाथदाल ब्राह्मण, महंत अयोध्या के राम के नाम के अच्छर है महिमा कहि सेस स न करी \. जालू प्रसाद सुरापुर में हर हर्षि हलाहल पान करते री ॥ १ मेघों का समूह ।