पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३१७

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शिवसिंहसरोज

२९८ शियसिंहसरोज ६५८, रामचंद कवि नागर, गुजरातचास ( गतगोविंदाद, भाषागलगोविंद ) सोरठ-आज़ंदकंद अमंद, सजन कुमुद कुल चंद प । डालचंद फुलचंद, रायचंद प्रतिपाल प्र ॥ १ ॥ घन चेरि आायो बम सघन तिमिर छायो रैन को डरेंगे लेखि देखि यों दृगन ते । नंदजू कहत बृषभानुदिनी सों नंदनंदनदि घ जा लैंसें बेग बन ते ॥ गुरु के वचन पाइ प्रेम की रचन भरे चले कुंज-तीर तरु देखि के विपिन ते । जमुना के ग्रैल में रहरि रसहूलि करें ऐसे राधा-माधौ बाधा हरें मेरे मन ते ॥ १ ॥ ६५६. रामदया कवि ( रागमाला ) दोह-भैरवदीपक, मेघश्री, कौखिक और हिंडोल । रामदयां घट राग ये) बरनत पुरुष अमोल ॥ १ ॥ मैरो और गाये कोल्हू आए सों चलत मालकौस के आलाये होत पाहन दरारें री । संबद सुने ते सूखे रूख हरेरे होत जल की कसू झरें मेघ की मलारें री ॥ चदि के हिंडोरे जब गावत हिंडोल रंग फिरकी सी डोलै पाय मारुत के रॉरें री। दीपक उचाएं दिया हाथ सगें न वारै मन औरै करि डरें ये कदंबन ली डरें री ॥ १ ॥ ६६०, राजाराम कवि। छाई छचि हीरन की रवि जोति जीरन की राजाराम चीन की चिलकारी अल । अवैला अहीरन की पाली दधि-छीरन की सोने से सरीरन की गारी दे दे बल ॥ पिचकारी नीरन की मार सम तीरन की देख दान चीरन की माँगिधे को ललकें। २ ) १ किनारे । २ वर्षों की । ३ ली।